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________________ पालि निकायों में व्यापार : संचालन एवं संगठन 381 - व्यापारिक नियमों एवं निर्देशों को साम्राज्य की प्रगति के एक प्रमुख आधार के रूप स्थापित किया। सन्दर्भ 1. म०नि० द्वि., पृ० 4701 2. दी०नि० प्र०, पृ० 711 3. अं० नि० दि०, पृ० 4341 4. अं० नि० प्र०, पृ० 207। 5. म०नि० वृ०, पृ० 241 6. दी०नि० द्वि०, पृ० 2601 7. जा० प्र० खं० सारिवाणीज जा० पृ० 1901 8. वही चुल्लसेट्ठी जाप०, पृ० 203 और आगे। 9. जा० प्र० ख० चुल्लसेट्ठी जा० पृ० 204 । 10. सट्ठिपणिज जातकं-जातकट्ठकथा पृ० 78। 11. रिज् डविड्स, बुद्धिस्ट इंडिया, पृ० 100-101 । 12. वही, पृ० 100। 13. जा० प्र० एवं वारुणी जा०, पृ० 373 और आगे। 14. वही अलत जा० पृ० 534 और आगे। 15. जा० प्र० ख० कूत्त्वाणिज जा पृ० 5701 16. रिज० डेविड्स, बुद्धिस्ट इण्डियाप, पृ० 1011 17. जा० तृ० ख० कक्कटल जा० पृ. 65 और आगे। 18. जा० तृ० खं० सत्तपत जा०, पृ० 108 । 19. वही मच्छुद्दान जा० पृ० 143 ! 20. दी० नि० प्र०, पृ० 632 21. अं० नि० तृ०, पृ० 83। 22. जा० प्र० खं० अपण्णक जा० पृ० 176 और आगे। 23. वही, वृ० 1811 24. वही वण्णुपथ जा० पृ० 186 और आगे। 25. वही क० जा०, पृ० 398 । 26. दिज् डेविड्स, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 103, 104 । 27. दी० नि० प्र० पृ० 189 विस्तार प्रवीन पालि साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 318 और आगे। 28. देखिये किक रिचर्ड द सोशल आर्नोनाइजेशन इन नार्थ इंडिया बुद्धज टाइम, पृ० 269 29. अं० नि० तृ०, पृ० 3071
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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