SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पालि निकायों में व्यापार : संचालन एवं संगठन 375 नैतिकता का होना आवश्यक है। व्यापारिक माल की खरीद के लिए होड़ में यदि किसी व्यापारी द्वारा पूर्व में ही अग्रिम दिया गया हो तो उस समझौते के विरूद्ध कोई अन्य व्यापारी अपन दावा प्रस्तुत नही कर सकता था । प्राय: इस व्यापारिक आचरण का सभी समर्थन करते थे । सेट्ठि वणिज जातक से हमें सूचना मिलती है कि उस समय स्थानीय उत्पादनों को बड़े-बड़े शहरों में भेज दिया जाता था या उन्हें बाजार तथा कस्बों में थोक विक्रेता खरीद लिया करते थे । वस्तुओं के मूल्य का निर्धारण मांग और पूर्ति के आधार पर किया जाता था । जातकों के अनुसार राजा किसी भी वस्तु को क्रय करने के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति करता था, जिसे 'अंगरखा' कहा जाता था । मूल्य निर्धारण कर यह कार्य आर्थिक स्थिरता बनाये रखने के लिए किया जाता था । जातकों के अनुसार उक्त राज्याधिकारी (अंगरखा) विभिन्न वस्तुओं पर 'लेवी' लगाने का भी कार्य करता था ।" व्यापारिक घराने अधिकारी को भ्रष्ट करने से नहीं चूकते थे तथा भाँति-भाँति के उपहार दे कर अन्य व्यापारियों के माल की तुलना में अपने मान की कीमत ज्यादा बढ़ावा देते थे । इस प्रकार, व्यापारिक लेन-देन में कतिपय उच्च आदर्शों के होते हुए भी व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला हुआ था । 12 विनिमय व्यापार की परम्परा बुद्ध युग में मुद्राओं की उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ सिमटने लगी । राइस डेविड्स के अनुसार सोने के सिक्कों का भी प्रचलन इस समय तक न था । विनिमय में सोने चाँदी की सिक्कों के रूप में नहीं किन्तु विनिमय माध्यम के रूप में अवश्य प्रयोग किया जाता रहा है।12 व्यापार विनिमय में वस्तु की कीमत का समान होना आवश्यक है। एक जातक में शराब के बदले स्वर्णाभूषणों को लेने की चर्चा की गई है जो समान्य विनिमय का एक प्रकार हेते हुए भी विपरीत व्यवहार को दर्शाता है। यदि किसी व्यापारी का कोई विश्वासपात्र मित्र होता तो वह उसके पास सैकड़ो गाड़ियों में माल भरकर भेजता था और उसके बदले अपनी बिक्री के लिए दूसरा माल मंगवा लिया करता था । 14 अतः विनिमय व्यापार में जहाँ वस्तु की कीमत में समानता का होना आवश्यक था, वहीं उसमें परस्पर विश्वास और साख का होना भी एक अनिवार्य तत्त्व के रूप में स्वीकृत था ।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy