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________________ श्रमण-संस्कृति समझना चाहिए। व्यापार की सफलता के लिए कतिपय अर्हताएँ निश्चित की गई थीं। अंगुत्तरनिकाय इस क्षेत्र में उस व्यक्ति को सफल मानता है जिसमें तीन विशेषताएँ एक साथ परिलक्षित होती हैं- दृष्टि सम्पन्नता अर्थात किस वस्तु की कितने मूल्य में खरीद एवं बिक्री की जाये, क्षमता सम्पन्नता अर्थात प्रत्येक खरीदी और बेची जाने वाली वस्तु में लाभ के प्रतिशत का ठीक-ठीक पूर्वानुमान कर लेना तथा दृढ़ विश्वासी होना व्यापारी का अंतिम और सबसे विशिष्ट गुण होता था । व्यापारिक लेन-देन से उपजी साख, सफलता के लिए अनुकूल पृष्ठभूमि तैयार करती है। जब कोई व्यापारी किसी दूसरे को माल देते समय उसकी साख का विश्वास कर सके और जब वह कोई वस्तु किसी से लेता है तो उसी साख का विश्वास सभी करें । 374 व्यापार के संचालन के लिए कोई एक निश्चित केन्द्र नहीं होता था । व्यापारियों का कर्त्तव्य है कि जिस प्रदेश में लाभ की संभावना हो वहाँ जाकर लाभ कमायें। वहाँ क्षेत्र की भौगोलिक अनुकूलता - प्रतिकूलता की परिभाषायें मिट जाती हैं, व्यापार का उद्देश्य लाभार्जन मात्र ही रह जाता है । 'दीघनिकाय से ज्ञात होता है कि गाँव के बाजार ( गामपट्ट) में भी जब व्यवसायिक बुद्धिवाला व्यापारी जाता था तो किसी वस्तु की खरीद बिक्री में लाभांश कितना है, इसका आपस में गहराई से विमर्श करता था। एक अन्य जातक से यह विदित होता है कि जब फेरी लगाने वाले किसी नगर में प्रविष्ट होते थे तो अपना माल बेचने के लिए आपस में नगर की गलियों को बाँट लेते थे । इससे दोनों को समान रूप से लाभ होते थे । इससे प्रतीत होता है कि व्यापारिक प्रतिद्वन्द्विता की भावना होते हुए भी आपस में भाईचारे एवं सहयोग की भावना का लोप नहीं हुआ था । व्यवसायिक बुद्धिवाला व्यक्ति मामूली वस्तु को बेचते हुए भी धीरे-धीरे सम्पन्न हो जाता है। किसी वस्तु को बेचने के क्रम में हुए लाभांश से उत्साहित हो कर पुन: किसी दूसरी वस्तु को बेचने का निरन्तर प्रयास करता है तथा इसकी जब पुनरावृत्ति होती है तो उसमें लाभांश सुरक्षित करता है। यही क्रम यदि कुछ दिनों तक चला तो व्यक्ति को समृद्ध होने में कोई अड़चन नहीं आती। व्यापार के समुचित संचालन के लिए व्यावसायिको में एक सीमा तक
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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