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________________ जैन धर्म में अहिंसा सिद्धान्त एवं उसकी प्रासंगिकता 345 उनसे किसी प्रकार की जीव हिंसा न हो सके । उत्सर्ग समिति में मुनि के शौचादि दैनिक कर्मों का निर्देश है। विधान है कि मुनि मल-मूत्र त्याग आदि में भी इस बात का ध्यान रखे कि किसी प्रकार की जीव-हिंसा न हो जाए या किसी कीट पतंग के हिंसा की सम्भावना न हो। अतः जैन धर्म व दर्शन के सभी कृत्य सूक्ष्म या स्थूल आन्तरिक या बाह्य अहिंसा को केन्द्र मानकर व्यवस्थित किये गये । अहिंसक आचार विचार आध्यात्मिक प्रगति एवं अन्ततः मोक्ष के साधन माने गये हैं विश्व के सभी धर्म व दर्शनों में अहिंसा को श्रेष्ठ आचार के रूप में स्वीकार किया गया। भारत में सभी धार्मिक व दार्शनिक पक्ष इसकी संपुष्टि करते हैं। कर्म बन्ध के परिहारार्थ संवर एवं संग्रहित कषायों को जीव से पृथक करने के लिए निर्जरा आदि में अहिंसा ही आचार का प्राण है । वनस्पति सदृश तत्वों की एकेन्द्रिय मान्यता जैन-अहिंसा की परिधि में लता - पुष्प से लेकर मानव देव तक आ जाते हैं। यही नही वरन् उसके वस्तुवादी विश्लेषण में अणु-परमाणु भी जीवयुक्त हैं । अतः मुंह ढककर सांस लेना, पानी छानकर पीना, धरती साफ करते हुए गमन करना जीव हिंसा के भय से दातुन न करना आदि कुछ अहिंसक आधार हैं जो हास्यपद से प्रतीक होते हैं। जैन धर्म की अवधारणा है कि मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों से अहिंसा व्रत का पालन होना चाहिये, जैन अहिंसा व्रत का पालन होना चाहिये। जैन अहिंसा व्रत का पालन छोटे-छोटे कार्यों में भी करते हैं यहाँ तक कि वे जीव की हिंसा नहीं करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि हिंसा के सम्बन्ध में सोचना, बोलना या दूसरों को हिंसा करने की अनुमति या प्रोत्साहन देना भी उनके लिए अधर्म है जब तक मन वचन तथा कर्म से अहिंसा व्रत का पालन न किया जाए तब तक अहिंसा पूर्ण नहीं मानी जाती । भारतीय संस्कृति में अगर हम इस ओर ध्यान दें तो हमें पूर्ण रूप से निराशा ही हाथ लगेगी आज समाज में चारों तरफ हिंसा हो रही है आतंकवाद का कहर व्याप्त है। कहीं आतंकवाद तो कहीं मजहब के नाम पर खून की होलियां खेली जा रही हैं। वहीं जैन धर्म में कहा गया है कि दिन में ही आवागमन को प्राथमिकता दे उस पथ का अनुगमन करे जो जीव जन्तुओं से विहिन हो जिसमें जीव, हिंसा ना हो और आज के परिवेश में लोग अपने स्वार्थ
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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