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________________ 344 श्रमण-संस्कृति किसी जीव को कष्ट न देना रहा है। जैन धर्म के इस अहिंसा के सिद्धान्त का प्रचार हुआ। कालान्तर में वैदिक कर्मकाण्डों और यज्ञों में बलि देना समाप्त कर दिया गया। वैदिक धर्म में अहिंसा पर अधिक जोर दिया गया आधुनिक युग में कोई वैदिक धर्म का उपासक किसी जैनी से कम अहिंसा प्रेमी नहीं था इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि अहिंसा के क्षेत्र में कुछ सीखा ही है। अहिंसा का प्रसार जितना जैन धर्म के कारण हुआ, उतना किसी अन्य धर्म के कारण नहीं हुआ। जैन धर्म एवं दर्शन में परिलक्षित सामायिक (समता) भाव का जैन अहिंसा का अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा जैन मुनियों एवं यतियों के लिए अहिंसा के कठोर परिपालन का विधान किया गया है जैन आचार में इस विषय पर विशेष बल दिया गया है कि किसी भी जीव को चाहे वह कीट पतंग ही क्यों न हो मनसा, वाचा, कर्मणा से किसी को कष्ट नहीं देना चाहिये इसके परिपालन के लिए जैन यति आचार के कुछ उपनियम समीति बनाई गयी। ईर्या समिति विशेष रूप से यतियों के आवागमन के निर्देश के निमित्त बनायी गयी है। यतियों का निर्देश है कि मार्ग में आते जाते, जाने-अनजाने जीव हिंसा की सम्भावना है अतः मुनियों को चाहिये कि वे सामान्यतः दिन में ही आवागमन को प्राथमिकता दें तथा उसी पथ का अनुगमन करें जो जीव-जन्तु विहीन हो। सम्भव हो तो चलते समय मयूर पंख से पथ-प्रक्षालन करते हुए चले। भाषा समिति का विशेष सम्बन्ध मुनियों के सम्भाषण को हिंसा रहित बनाना है। विधान है कि मुनि को मृदु वचन बोलना चाहिये। परुष वचन का निषेध करना चाहिये निन्दा, मृषावाद, प्रलाप रंजन नहीं करना चाहिये। सम्भाषण में आत्मप्रशंसा, नारी विषयक प्रसंग, राजा विषयक प्रसंग, चोर विषयक प्रसंग एवं भोजन सम्बन्धी प्रसंग नहीं लाना चाहिये एषणा समिति का सम्बन्ध मुनि भोजन विधान से है। मुनि को भिक्षा या भोजन में जो कुछ मिल जाए उसी से सन्तोष करना चाहिये और अधिक की कामना नहीं करना चाहिये साथ ही उसे यह भी ध्यान रखना चाहिये कि भोजन में जीव हिंसा या किसी अन्य प्राणी के प्रति हिंसा तो नहीं हो रही है। आदान-निक्षेपण समिति के अन्तर्गत उसके दैनिक व्यवहार में लायी जाने वाली वस्तुओं के प्रयोग का विधान है। उदाहरणस्वरूप उसके जलपात्र या भिक्षापात्र को इस प्रकार रखना चाहिये कि
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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