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________________ 266 श्रमण-संस्कृति एक बार भिक्षुणी संघ अस्तित्व में आ गया तो अनुकूल परिस्थितियों को पाते ही इसका विकास तीव्र गति से हुआ। यद्यपि बौद्ध धर्म की भिक्षुणी संघ की स्थापना भिक्षु संघ की स्थापना के बाद और वह भी सन्देहशील वातावरण में हुई थी, परन्तु कुछ समय के अनन्तर ही यह बौद्ध संघ का एक आवश्यक अंग हो गया और बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। द्वितीय बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म एक एकीकृत (अखण्ड) धर्म के रूप में नहीं रह गया था, अपितु कई निकायों में विभाजित हो गया था। बाद में विभाजित बौद्ध धर्म का चित्र ही हमारे सामने उपस्थित होता है। अशोक के समय तक बौद्ध धर्म में विकसित 18 निकायों का पता चलता है। अतः हम कहते सकते हैं कि वास्तविक अर्थों में बाद में बौद्ध धर्म का इतिहास निकायों का इतिहास है। इसी प्रकार बौद्ध भिक्षुणी संघ का विकास भी उन्हीं बौद्ध निकायों का विकास है जिसकी वे सदस्या थीं। यद्यपि किसी भिक्षुणी के किसी विशेष निकाय के संघ में प्रविष्ट होने अथवा उनका सदस्य बनने का उल्लेख नहीं मिलता। ऐसे स्थानों से प्राप्त भिक्षुणियों से सम्बन्धित अभिलेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे उस स्थान पर विकसित निकाय की सदस्यायें थीं। भारत भर में बिखरे हुए अभिलेखों के प्राप्ति स्थल एवं ग्रन्थों विशेषकर थेरीगाथा की अट्ठकथा (परमत्थदीपनी) के माध्यम से बौद्ध भिक्षुणी संघ के प्रसार को देखा जा सकता है। अभिलेखों में भिक्षुणियों द्वारा दिये गये दानों का उल्लेख है। अतः जिन स्थानों पर भिक्षुणियों के दानों का उल्लेख है, वहाँ-वहाँ भिक्षुणियों अथवा उनका कोई छोटा या बड़ा संघ अवश्य रहा होगा। सांची, सारनाथ, कौशाम्बी' एवं भाव (जयपुर के पास वैराट) में प्राप्त अशोक के अभिलेखों में उत्कीर्ण 'भिक्षुणी' तथा 'भिक्षुणी संघ' शब्द यह स्पष्ट द्योतित करता है कि तृतीय शताब्दी ई० पू० के समय तक ये स्थल भिक्षुणी केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुके थे। सांची, सारनाथ एवं कौशाम्बी के अभिलेखों में बौद्ध संघ में भेद पैदा करने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों को चेतावनी दी गयी है। सारनाथ परवर्ती काल में भी एक प्रसिद्ध भिक्षुणी केन्द्र के रूप में बना रहा। प्रथम शताब्दी के एक लेख" में भिक्षुणी बुद्धमित्रा को 'त्रिपिटिका'
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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