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________________ बौद्ध संघ में भिक्षुणियों की स्थिति एवं भिक्षुणी संघ का विकास 265 भिक्षु किसी भिक्षुणी को सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अभिवादन करता था, तो वह दोषी माना जाता था। यहाँ हम देखते हैं कि योग्यता को बिल्कुल महत्व नहीं दिया गया है, केवल लिंगभेद के आधार पर ही ज्येष्ठता का निर्धारण किया गया है। बौद्ध संघ में इस अनुचित नियम के विरोध में भिक्षुणियों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया के भी दर्शन होते हैं। अष्टगुरुधर्म स्वीकार कर लेने के उपरान्त महाप्रजापति गौतमी ने बुद्ध से यह अनुमति चाही थी कि भिक्षु-भिक्षुणियों के मध्य अभिवादन-अभ्युत्थान तथा चीकर्म (कुशल-समाचार पूछना) ज्येष्ठता के अनुसार हो, लिंग के आधार पर नहीं। गौतमी द्वारा उठाया गया यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण था, जिसका दूरगामी प्रभाव पड़ता। लेकिन बुद्ध ने अपनी विमाता के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया तथा कठोरतापूर्वक यह नियम बनाया कि अभिवादन वन्दना आदि भिक्षुणियों को ही करना चाहिये। संभवतः बुद्ध ने संघ में भिक्षुणियों की उच्च स्थिति को इसलिए नहीं स्वीकार किया कि इससे सामाजिक संतुलन को खतरा उत्पन्न हो सकता था। संघ में स्त्रियों को प्रवेश आनन्द के कहने पर मिला था। लेकिन अगर संघ में स्त्रियों को अधिक सम्मान मिलता तो संभव था कि गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रही स्त्रियां व्यापक सम्मान की आकांक्षा से वशीभूत होकर संघ प्रवेश की अनुमति मांगने लगें। उपसम्पदा के उपरान्त भिक्षुणियों को तीन निश्रय तथा आठ अकरणीय' धर्म बतलाये जाते थे। ये आठ अकरणीय धर्म पाराजिक प्रायश्चित के ही दूसरे नाम थे। पाराजिक बौद्ध संघ का सबसे कठोर दण्ड था, जिसमें भिक्षुणी सदा के लिए संघ से निष्कासित कर दी जाती थीं। वह अभिक्खुनी कहलाती थी। उसकी तुलना सिर कटे हुए व्यक्ति से की जाती थी। स्पष्ट है कि अकरणीय धर्म के माध्यम से अधिक कठोर प्रतिबन्ध में रखने की कोशिश की गयी थी। इस नियम के अनुसार भिक्षुणियों को भिक्षु संघ के साथ वर्षावास करने का विधान था। भिक्षुणियों को अकेले यात्रादि करना निषिद्ध था। उन्हें जंगल में रहने की अनुमति नहीं थी। उपर्युक्त नियम नारी-प्रकृति को ही ध्यान में रखकर बनाये गये थे तथा उसमें भिक्षुणी की चारित्रिक सुरक्षा का प्रश्न महत्वपूर्ण था। भिक्षुणियों को अरण्यवास आदि की आज्ञा देने पर उनके शील-अपहरण आदि का क्षय था।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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