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________________ 262 श्रमण-संस्कृति यह ज्ञात होता है कि अशोक के धर्म प्रचारकों ने लंका के लिए इसी बन्दरगाह से प्रस्थान किया था। शाकत कनिंघम ने इसे रावी नदी के पश्चिम में स्थित संगलवाला टीला से समीकृत किया है। कुछ विद्वानों ने इसे रयालकोट या मद्रनरेश शल्य के किले से समीकृत किया है। युवानच्वान्ग मतानुसार शाकल के प्राचीन नगर शे-की-लो की परिधि लगभग 20 ली थी, यद्यपि उसका प्रकार ध्वस्त हो चुका था, किन्तु इसकी नींव अब भी दृढ़ एवं पुष्ट थी। यहाँ पर एक विहार था जहाँ हीनयान सम्प्रदाय के 100 भिक्षु रहा करते थे। इस विहार के पश्चिमोत्तर में अशोक द्वारा निर्मित कोई 200 फीट ऊँचा एक स्तूप था। प्रयाग प्रयाग (चीनी पो-लो-ये किया) आधुनिक इलाहाबाद है। प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में प्रयाग गंगा तट पर स्थित एक तीर्थ या घाट बतलाया गया है। चीनी यात्री युवानच्वाड़ के समय में इस प्रदेश की परिधि 5000 ली और इसकी राजधानी की 20 ली से अधिक थी। गंधार विहार __ गंधार जन का, जो ऋग्वैदिक युग से विज्ञात एवं प्राचीन जन थे। अशोक के पंचम शिलालेख में गंधार के निवासियों के रूप में किया गया है। इस देश में 1000 से अधिक बौद्ध विहार थे, किन्तु वे पूर्णतः जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे। अनेक स्तूप खण्डहर हो गये थे। गंधार की प्राचीन राजधानियाँ पुष्पकलावती और तक्षशिला थीं, जिनमें प्रथम सिंधु नदी के पश्चिम और द्वितीय, सिंधु नदी के पूर्व में स्थित थी। कुशीनारा इसका प्राचीन नाम कुशावती है। कनिंघम के अनुसार कुशीनारा को कुशीननगर जिले के पूर्व स्थित कसया से समीकृत किया जा सकता है। इस मत की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि इस गाँव के निकट निर्वाण-मंदिर के पीछे स्थित स्तूप में एक ताम्रपत्र मिला है, जिस पर परनिर्वाण चैत्य ताम्रपट उत्कीर्ण
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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