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________________ 255 प्राचीनतम् बौद्ध संघ और काशी उल्लेख है, जो गणिका वर्ग की थी। भिक्षुओं में तीन ब्राह्मण वर्ग के तथा 5 वैश्य वर्ग के थे, और सभी उपासक-उपासिकायें वैश्य-गृहपति वर्ग के थे। इस प्रकार काशी के श्रद्धालुओं में अपेक्षाकृत वैश्य-गृहपति वर्ग का आधिक्य था। वैश्य-गृहपतियों का यह आधिक्य सम्भवतः काशी में उनकी बहुलता के कारण था और इससे भी काशी की बहुविध्य वृद्धि-समृद्धि की पुष्टि होती है। संदर्भ 1. विनय, महावग्ग, 1, 5-6, मज्झिम निकाय, पासिरास सुत्त और बोधि- राजकुमार सुत्त। 2. दीघनिकाय, महापरिनिब्बान सुत्त, और महासुदस्सन सुत्त। 3. विनय, महावग्ग, 10, 2, 3, दिव्यावदान, पृ० 73 और 98, महावस्तु 3, 286, संयुक्त निकाय वेलुद्वारेय्यसुत आदि। 4. विनय, महावग्ग, 1,6। 5. मज्झिमनिकाय, पासिरास सुत। 6. विनय, चुल्लवग्ग, 6, 23, तथा, 6, 23, 10। 7. संयुक्त निकाय 55, 53 (धम्मदिन सुत्त) 8. दीर्घ निकाय, महापरिनिब्बान सुत्त। 9. संयुक्त निकाय, 41-1, और आगे (चित संयुत्त, विशेषकर 16, 23) (एक पुत्रक सुत्त), अगुत्तर निकाय, 2, 12, 3, 4, 18, 6। 10. संयुक्त निकाय, 41, 9 (अचेलकस्सप सुत्त)। 11. अंगुत्तर निकाय, 1, 14, (च, 3) 12. संयुक्त निकाय, 41-10 (गिलास दस्सन सुत्त)। 13. विनय, चल्लवग्ग,6,131 14. मज्झिम निकाय, कीटगिरी सुत्त।
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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