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________________ 37 ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी के प्रमुख तीर्थ स्थलों का महत्व एस० एन० उपाध्याय प्राचीन भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ चतुष्टय की अवधारणा में मोक्ष प्राप्ति हेतु प्रमुख तीर्थ एवं तीर्थस्थलों का विशेष महत्व है। उत्तर में विशाल पर्वतमाला, तीन समुद्रों से घिरी तटीय रेखा के साथ सजीव भारत मनोरम् परिदृश्यों वाला एक राष्ट्र है। भू-आकृति सम्बन्धी विभिन्नताओं के साथ इसकी सांस्कृतिक विविधता भी अपने में बेजोड़ है। भारत की व्यापकता इसकी समृद्धि, सांस्कृतिक विरासत, समय-समय पर मनाये जाने वाले उत्सव एवं पर्व, बर्फ से ढकी पर्वतमालायें, हरे-भरे एवं पठारी क्षेत्र, दीर्घ तट रेखा आदि मिलकर एक अविस्मरणीय जीवन्त संस्कृति का अवगाहन कराते हैं।' प्राचीन भारतीय संस्कृति में विशाल पर्वत श्रृखलायें एवं लम्बी पवित्र नदियाँ, सघन वन सदैव पुण्यप्रद एवं दिव्य स्थल बताये गये हैं। ऐसे ही दिव्य स्थलों को तीर्थ मानकर तीर्थ यात्रियों ने समय-समय पर वहाँ यात्रायें की जो परंपरागत तीर्थस्थल के रूप में जाने गये। इन तीर्थ स्थलों पर यात्राओं से भारतीय संस्कृति एवं देश की मौलिक एकता एवं अखण्डता अक्षुण्ण रखने में सहायता मिली है। पवित्र तीर्थस्थलों पर यात्रा सम्बन्धी परम्परा को बनाये रखने में भारतीय संस्कृति के अनेक मूल तत्त्वों ने बड़ा योगदान किया है। काशी हो मथुरा, द्वारिका या रामेश्वरम् सभी भारतीयों ने उसे समान रूप से पवित्र माना। समाज में व्याप्त जातीय संकीर्णताओं एवं जटिल जीवन के बावजूद इन तीर्थों ने सभी जातियों, सम्प्रदायों को पवित्र नदियों, तीर्थस्थलों को
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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