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________________ जैन दर्शन एवं संस्कृत साहित्य-शास्त्र 241 केन्द्र बन गया था। काव्य-शास्त्र के अनेक आचार्यों ने वहाँ रह कर साहित्य का निर्माण किया था । उसी परम्परा में रामचन्द्र और गुणचन्द्र के बाद वाग्भट का नाम आता है। साहित्यिक क्षेत्र में वाग्भट का नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है । वाग्भट अनहिलपट्टन के राजा जयसिंह के महामात्य थे। एक बड़े राज्य के महामात्य, महाकवि और महान विद्वान होने पर भी इनकी जीवनकथा बड़ी करुण है। इन्हें अपने इस महामात्यव्य का 'महामूल्य' चुकाना पड़ा। इनकी एक पुत्री थी, परम सुन्दरी, परम विदुषी और अपने पिता के सदृश अति प्रतिभाशालिनी । जब वह विवाह योग्य हुई तो उसे बलात् इनसे छीनकर राजप्रसाद की शोभा बढ़ाने के लिए भेज दिया गया । न वाग्भट इसके लिए तैयार थे और न कन्या । पर 'अप्रतिहता राजाज्ञा' के सामने दोनों को सिर झुकाना पड़ा। विदाई के समय कन्या अपने रोते हुए पिता को सांत्वना देते हुए कह रही हैं - 44 'तात वाग्भट ! मा रोदी: कर्मणां गतिरीदृशी । " दुष् धातोरिवाट्माकं गुणों दोषाय केवलम् ।। व्याकरण प्रक्रिया के अनुसार दुष् धातु को गुण होकर 'दोष' पद बनता है । 'दुष्' धातु को गुण का परिणाम दो है । इसलिए हे तात् ! आप रोइये नहीं, यह तो हमारे कर्मों का फल है कि दुष् धातु के समान हमारा गुण भी दोष जनक हो गया । यह करुण वर्णन जैन काव्यशास्त्री ही कर सकता है। वैसे मूलतः वाग्भट को महाकवि और अलंकारकर्ता कहा गया है। वाग्भटालंङ्कार, काव्यानुशासन ने विनिर्माण महाकाव्य, ऋषभदेव चरित छन्दोनुशासन और आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ अष्टाङ्गहृदय आदि ग्रन्थों के रचयिता वाग्भट्ट माने जाते हैं। इन सबके रचयिता एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग व्यक्तियों ने इनकी रचना की है इस विषय में मतभेद हैं। कुछ लोग वाग्भट प्रथम और वाग्भट द्वितीय हुए ऐसा मानते हैं। उनके मत में प्रथम वाग्भट केवल वाग्भटालङ्कार के निर्माता हैं और काव्यानुशासन, ऋषभदेव चरित तथा छन्दोनुशासन इन ग्रन्थों को ये लोग दूसरे वाग्भट की रचना बतलाते हैं । किन्तु यह विनिर्माण महाकाव्य तथा आयुर्वेद की अष्टाङ्गहृदय संहिता इन दोनों में से किस वाग्भट की कृति है इस विषय पर ये लोग कोई प्रकाश नहीं डाल सके हैं। वास्तव में तो इन सब ग्रन्थों के रचयिता वाग्भट नाम के एक ही व्यक्ति प्रतीत होते हैं। वाग्भटालङ्कार की टीका (4-148 ) में वाग्भट को जिस प्रशंसाभाव से
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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