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________________ 214 श्रमण-संस्कृति वैश्य, शूद्र आदि चार वर्णों में विभाजित था। चारों वर्णों व जातियों के लिये अलग-अलग नियम व विधि-विधान बये हये थे। फलतः समाज में ऊंच-नीच और छुआछूत की भावना बढ़ गयी थी। सामाजिक कुप्रथायें अपने चरम पर थीं। जाति प्रथा की जटिलता से आम जन मानस बुरी तरह खिन्न था। समाज में ब्राह्मणों की प्रभुता स्थापित हो चुकी थी। धार्मिक विधियां और संस्कार इतने जटिल व खर्चीले थे कि साधारण व्यक्ति इनका सम्पादन करने का साहस ही नहीं जुटा पाता था। यज्ञ, हवन, व पूजा पाठ में ब्राह्मण पुरोहितों की अनिवार्यता, खर्चीली व व्यवसाध्य व्यवस्था से लोगों की आस्था टूट चुकी थी। पशुबलि व नरबलि के विरूद्ध आम जनता के मन में घृणा व अनासक्ति पैदा हो गयी थी। ब्राह्मण धर्म में वेदों को सर्वोपरि बताते हुए जाने लगा था कि 'वेदों में जो कुछ कहा गया है वही धर्म है उसके विरूद्ध जो कुछ भी है व अधर्म है।' वेदों की सर्वोपरिता ने लोगों में विवेक, बुद्धि ज्ञान व स्वतंत्र चिन्तन की प्रवृत्ति के विकास को अवरूद्ध करने का कार्य किया। साथ ही संस्कृत भाषा साधारण मनुष्य की समझ से परे थी और सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गये थे। अतः साधारण जनता एक ऐसा धर्म चाहती थी जो उनकी बोलचाल की भाषा में लिखा गया हो, जिसे वह भली-भांति समझ सके। वैदिक धर्म में मानव जीवन पर देवी-देवताओं का अधिपत्य माना गया। मनुष्य अपने जीवन की सभी गतिविधियों का केन्द्र देवी-देवताओं की आराधरा को ही समझने लगा था। अतः मनुष्य के जीवन में आत्मविश्वास, पुरुषार्थ, अस्तित्व बोध व प्रगतिशीलता का पूरी तरह लोप हो चुका था। उपरोक्त सभी कारणों से तत्कालीन भारतीय समाज के सभी लोग सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था से पूरी तरह असन्तुष्ट होकर नयी सामाजिक व्यवस्था की खोज के लिये प्रयत्नशील थे। कर्मकाण्डों, यज्ञादि अनुष्ठानों, कठोर वर्ण एवं जाति व्यवस्था, बाह्य आडम्बरों, नरबलि व पशुबलि जैसी अमानवीय प्रथाओं से त्रस्त जनता को एक सीधे-साधे सरल व नैतिक जीवन मार्ग की गवश्यकता थी और इस आवश्यकता को जैन व बौद्ध धर्म ने पूरा किया। बौद्ध धर्म अत्यन्त ही सीधा-साधा, सरल व सुबोध धर्म था। इस धर्म को साधारण से साधारण व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता था एवं उसके
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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