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________________ जैन धर्म में यक्षिणियाँ अमरावती कला में भी किया गया है। यक्षिणी विषय वासना से पूर्ण कामातुर के रूप में दिखलाई गयी है। अमरावती के कलाकारों का ध्यान मानव आकृति पर अत्यधिक दिखलाई पड़ता है। बिहार प्रान्त के चौसा नामक स्थान से कांसे के धर्मचक्र के मूँठ के साथ ही दो यक्षिणियों की मूर्तियाँ मिली हैं। ध्यातव्य है कि यह मूर्ति सांची तोरण की यक्षिणी से मिलती हैं ।" गुप्त काल में जैन मूर्तियों में यक्ष यक्षिणियों की मूर्तियों को पर्याप्त महत्व दिया गया है। गुप्त कालीन जैन मूर्तियां सुन्दरता तथा कलात्मक दृष्टि से उत्तम समझी गयी हैं। गुप्तयुग की मूर्तियों में 'अधोवस्त्र' तथा 'श्रीवत्स' दो प्रमुख विशेषताएं दिखलाई पड़ती हैं।" जैन मत में यह विश्वास है कि इन्द्र ने प्रत्येक तीर्थंकर की सेवा के लिए यक्ष तथा यक्षिणी को नियुक्त किया है। जैन धर्मावलम्बी यक्षिणियों को तीर्थंकर की सहायक देवी या शासन देवी मानते हैं।" यक्षियों की लाक्षणिक विशेषताएं एवं उनके नामों की सूची अपराजितपृच्छा जैसे ग्रन्थों में मिलते हैं। इनके नामों की सूची में किंचित अन्तर देवतामूर्तिप्रकरण एवं रूपमण्डन जैसे ग्रन्थों में दिखलाई पड़ते हैं । अपराजितपृच्छा से प्राप्त सूची दिगम्बर सम्प्रदाय से तथा रूपमण्डन एवं देवतामूर्तिप्रकरण की सूची श्वेताम्बर सम्प्रदाय की यक्षियों की सूची से मिलती हैं । यक्षियों के नामों के किंचित अन्तर निम्न सारणी से समझा जा सकता है 12 क्रम तीर्थंकर 1. ऋषभनाथ 2. अजितनाथ 3. सम्भवनाथ 4. अभिनन्दन 5. सुमतिनाथ 6. पद्मप्रभ 7. सुपार्श्वनाथ 8. चन्द्रप्रभ अपाराजितपृच्छा चक्रेश्वरी रोहिणी प्रज्ञा बज्र श्रृंखला नरदत्ता मनोवेगा कालिका ज्वालामालिनी 133 रूपमण्डन देवतामूर्तिप्रकरण चक्रेश्वरी अजितबला दुरितारी कालिका महाकाली श्यामा शान्ता भृकुटि चक्रेश्वरी अजितबला दुरितारी कालिका महाकाली श्यामा शान्ता भृकुटि
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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