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________________ 132 -संस्कृति श्रमण पीठे काष्र्णायसे चैव निषण्णं कृष्णवाससम् । प्रहरन्ति स्म राजानं प्रमदाः कृष्णपिगलाः ।।' इसी प्रकार एक अन्य स्वप्न में भरत ने देखा कि एक लाल वस्त्र पहने विकराल मुख वाली राक्षसी महाराज को हँसती हुई खीचकर लिए जा रही थी यथा रक्तवासिनी । प्रहसन्तीव राजानं प्रमदा प्रकर्षन्ती मया दृष्टा राक्षसी विकृतानना । । इसी प्रकार रामायण में अयोमुखी का नाम आया है जो अपने को लक्ष्मण की पत्नी बताती है। पालि जातक कथाओं में भी अश्वमुखी यक्षी के सन्दर्भ एक कहानी के रूप में मिलती है जिसकी कोख से बोधिसत्त्व का जन्म हुआ था। इस जातक को विद्वान अश्वमुखी जातक भी कहते हैं। श्रीलंका के पालि ग्रन्थ महावंश से भी अश्वमुखी यक्षी के उल्लेख मिलते हैं। अपने मामा गणों से संघर्ष के समय श्रीलंका के राजकुमार पाण्डुकाभय को चेतिया नाम की श्वेत अंग एवं लाल पैर की एक अश्वमुखी मिली थी जिनके सहयोग से पाण्डुकाभय को अपना राज्य वापस मिल गया था इसमें इस यक्षी का सम्बन्ध एक राजपुरुष के साथ दिखलाया गया है। अश्वमुखी यक्षी जातक कथागत शिल्पांकन सांची, भाजा, बोधगया, मथुरा, पटना आदि की उत्कीर्ण प्रस्तर कला में पाया गया है। सांची शिल्प में एक पुरुष और एक अश्वमुखी के मिथुन के दो अंकन मिले हैं। एक अंकन स्तूप नं० - 2 के एक वेदिका स्तम्भ (क्रमांक 86) के केन्द्रीय चक्रफलक में खुदे मिले हैं। इसमें एक अश्वमुखी अपनी गोद में एक मानव पुरुष को ले जाती हुई अंकित है ।" सांची शिल्प का दूसरा अंकन स्तूप सं० 3 के एक मात्र तोरण की निचली बड़ेरी पर उत्कीर्ण है इस दृश्य में एक शिलातल पर आमने सामने बैठे हुए एक पुरुष और एक अश्वमुखी यक्षी को उकेरा गया है इसमें बन का वातावरण उपस्थित किया गया है।' ई० सन् की दूसरी शती में भरहुत एवं साची के यक्षिणी का अनुकरण
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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