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________________ भारतीय संस्कृति पर बौद्ध व जैन- परम्परा का प्रभाव उत्तर वैदिक काल की धार्मिक आस्थाएँ, यज्ञ अनुष्ठान एवं कर्मकांडीय व्यवस्था जहाँ प्रारम्भ में तत्कालीन भौतिक पृष्ठभूमि से प्रभावित थी तथा वृहत्तर समुदाय के संगठन में मदद करती थी, परंतु लौह तकनीक में उत्तरोत्तर विकास तथा इसका कृषि, उद्योग, व्यापार तथा राजनीति पर पड़े प्रभाव ने छठी शताब्दी ईसापूर्व तक इसे मूल्यहीन बना दिया । महात्मा बुद्ध तथा महावीर स्वामी का उदय इस प्रकार छठी शताब्दी ईसापूर्व में वैदिक धर्म में आयी कुरीतियों तथा इसके विरोधस्वरूप अतिवादी सिद्धांतों पर आधारित उपदेश के कारण समाज में पैदा हुई नयी समस्या ने भारत की स्थिति दयनीय कर दी थी । इस स्थिति से निदान तथा समाज को पुनः दिशा दिखाने के लिए ऐसे महापुरुषों की आवश्यकता थी जिनका चिंतन उस समय के सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों को समाहित करता हो तथा वैदिक धर्म की जीर्ण परंपराओं तथा विभिन्न परिव्राजकों के अव्यवस्था मूलक उपदेशों से समाज को मुक्ति दिलाने में सक्षम हो। ऐसे ही उपयुक्त समय पर हो महापुरुषों का जन्म भारत में हुआ, जिनकी शिक्षा तथा उपदेश भारतीयों द्वारा ही नहीं वरन् विश्व के कई क्षेत्रों में स्वीकार किया गया। 125 इन दो महापुरुषों में एक महावीर स्वामी थे जो जैनधर्म के 24वें व सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थंकर थे । इनका जन्म 540 ईसापूर्व में वैशाली के निकट कुण्डग्राम गांव में हुआ था । वे वैशाली के वज्जिसंघ के शातृक क्षत्रिय कुल से संबंधित थे । तथा दूसरे महापुरुष महात्मा बुद्ध का जन्म 566 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु जो वर्तमान बिहार तथा नेपाल की सीमा पर पड़ता है, में हुआ। वे शाक्य क्षत्रिय कुल से संबंधित थे । बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के उपदेश महात्मा बुद्ध तथा महावीर जैन दोनों श्रमण संस्कृति के निवृत्ति मार्ग (सन्यासी मार्ग) से संबंधित थे। इनके संबंध में हमें जानकारी क्रमशः बौद्ध ग्रंथों तथा जैन ग्रंथों से मिलती है। बौद्ध ग्रंथों में महत्वपूर्ण है त्रिपिटक - (1) सुत्त पिटक, (2) विनय
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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