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________________ बौद्ध धर्म का तत्कालीन स्त्रियों के धार्मिक अधिकार पर प्रभाव 109 के समान दर्जा प्रदान किया। बुद्ध का युग गंगा नगरीकरण के उद्भव व विकास के साथ ही साथ व्यक्तिवाद के उदय और तत्कालीन ब्राह्मण संस्कृति के हाशिए पर सामाजिक व आध्यात्मिक रूप से रह रहे लोगों पर इसके प्रभाव का गवाह था। उभरती नयी सामाजिक व्यवस्था की विद्यमान सामाजिक मूल्यों के बचाव में बहुत कम दिलचस्पी थी और ऐसे वातावरण में महिलाएं व निचले सामाजिक तबके के लोग आम तौर पर अपनी पसंद के धार्मिक लक्ष्य को पाने व प्रकट करने में अधिक स्वतंत्र थे जिस प्रकार बुद्ध द्वारा स्थापित लक्ष्य किसी खास वर्ग में पैदा हुए लोगों के लिए नहीं थी, उसी प्रकार बुद्ध द्वारा स्थापित लक्ष्य किसी खास वर्ग में पैदा हुए लोगों के लिए नहीं था, उसी प्रकार यह केवल पुरुषों तक ही सीमित नहीं था। बहुत-सी नारियों ने बुद्ध द्वारा मुहैया कराये गये इस अवसर का फायदा उठाया। प्रारम्भिक बौद्ध धर्म में न केवल महिलाओं के लिए धर्मपथ खुला था, बल्कि वास्तव में यह रास्ता महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए एक ही प्रकार का था। ऐसी बात नहीं कि लिंग-भेद विद्यमान नहीं थे, लेकिन वे 'मुक्ति प्राप्त करने की दृष्टि से नगण्य थे। जो अधिक से अधिक मुक्ति के वास्तविक लक्ष्य में विपथक हो सकते थे। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि बौद्ध युग में नारी का स्थान महत्वपूर्ण हो गया था। क्योंकि वह जीवनशक्ति देती है, सौन्दर्य प्रदान करती है, वह आनंद देती है और बल प्रदान करती है। जीवनशक्ति देने से वह मानवीय एवं देवी जीवन शक्ति की, सौन्दर्य देने में सौन्दर्य की, आनंद देने से आनंद की और बल देने से मानवीय एवं देवी बल की साझीदार बन जाती है। बौद्ध ग्रंथों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण से इतर महिलाओं की निंदा एवं अवगुणों की भी चर्चा किया गया है। स्त्रियों को दो अंगुल प्रज्ञावाली4 (यानी चावलों के पक जाने पर दो अंगलियों से उन्हें दबाकर देखना ही जिसका एकमात्र बुद्धिमानी का कार्य है) कहना नारी समाज का अपमान करना था। इसके अतिरिक्त जातक साहित्य में स्त्रियों के दुर्गुणों के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं नारी को सार्वजनिक उपभोग की वस्तु कह देना जातक युग में आम बात थी। उसमें कहा गया है कि 'स्त्रियां असभ्य होती हैं, अकृतज्ञ होती है,
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
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