SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण-संस्कृति बौद्ध ग्रंथों में वर्णि तथ्यों से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि बुद्ध ने आनन्द के कहने पर संघ में स्त्रियों के प्रवेश को स्वीकार किया। लेकिन ऐसा लगता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद आनन्द, संघ में महिलाओं के प्रवेश देने के मुद्दे पर अलग-थलग पड़ गये। राजगृह में आयोजित प्रथम बौद्ध संगति में आनन्द की सिर्फ इसलिए आलोचना की गई कि उन्होंने संघ में स्त्रियों के प्रवेश का समर्थन किया था। इस प्रसंग से यह तथ्य उभड़कर सामने आता है कि - अधिकांश बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश और उन्हें समान दर्जा दिए जाने को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। ये बातें बौद्ध धर्म में पुरुषवादी दृष्टिकोण को ही प्रदर्शित करती हैं। बुद्ध द्वारा ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपनी पत्नी यशोधरा का परित्याग करना भी एक विचारणीय प्रश्न है। बुद्ध का दृष्टिकोण महिलाओं के प्रति सम्मानजनक, सकारात्मक और क्रांतिकारी था। बुद्ध ने महिलाओं को ज्ञानी, मातृत्वशील, सृजनात्मक, भद्र और सहिष्णु के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने भिक्षुणी संघ की स्थापना करके महिलाओं की मुक्ति के लिए नये मार्गों को खोला। महिलाओं के लिए यह सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति आलोच्य अवधि में समय से काफी आगे और क्रांतिकारी थी। बहुत सी महिलाओं ने बुद्ध के इस दृष्टिकोण का लाभ उठाया। बुद्ध की शिष्याओं में कुछ साधारण शिष्याएं ही बनी रहीं तो कुछ भिक्षुणी बनी तथा उन्होंने सांसारिक मोहमाया का परित्याग कर दिया। बुद्ध ने पुरुषों और महिलाओं को एक एकीकृत व्यक्तित्व के पूरक पहलुओं के तौर पर करूणा और बुद्धि के रूप में देखा था। वास्तव में बौद्ध धर्म ने महिला मुक्ति और महिला समानता के आदर्श को समाज के सामने देखा। बौद्ध धर्म में जिस बिहार व्यवस्था की स्थापना की गई वह भी महिला-पुरुष समानता का आदर्श प्रस्तुत करता था। प्रायः महिलाओं के लिए उनका विहार जीवन पुरुषों के लिए उपलब्ध आत्मनिर्णय और प्रतिष्ठा के लगभग बराबर था। भिक्षुणी संघ की स्थापना, भिक्षु संघ की स्थापना के पांच वर्ष बाद की गई। इस संध की स्थापना के प्रारंभिक चरणों में भिक्षुणियों ने बौद्ध भिक्षुओं से ही अनुशासनिक कार्यों के विभिन्न रूपों के साथ-साथ ज्ञान के विभिन्न पक्षों को सीखा था।2
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy