SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (vi) के लिए प्रचलित था जो अपनी तपस्या साधना के लिए समाज में विख्यात थे। इसीलिए दोनों धर्मों के लिए एक सम्बोधन श्रमण' का प्रचलन लोक व्यवहार में हुआ। श्रमण संस्कृति भारत की वैदिक संस्कृति से पृथक अपनी पहचान रखती है। श्रमण संस्कृति की उज्ज्वल परम्परा ने शील, संयम, तप, और शौच को चरित्र में परिवर्तित कर मानव-जीवन को युगों-युगों से विभूतिमय किया है। आचार और विचार के क्षेत्र में युगान्तरकारी परिवर्तन उपास्थित किए है। मानव समझने का विवेक जन मानस में अंकुरित किया और अखिल मंगलमय अहिंसामूलक विश्व मैत्री का संदेश किया है। समय-समय पर आने वाले दुरन्त उपसर्गों को पार कर आज भी वह अपने अर्ध धरातल पर अवस्थित है और काल प्रभाव से प्रभावित न होते हुए काल दोषों को निरस्त करने में ही संलग्न है। आज जबकि विश्व में काले, गोरे तथा परस्पर भिन्न जाति के मानवों में एक दूसरे को समाप्त करने की स्पर्धा लगी हुयी है, जिज्ञासु वृत्ति से सीमातिक्रमण किये जा रहे मानव को परित्राण देने का पाथेय केवल उदर श्रमण संस्कृति में है। क्षमा और अहिंसा के मणि-पीढ से भगवती जिनवाणी पुकार-पुकार कर कहती है- 'खम्मामि सव्वजीवान् सव्वे जीवा खमन्तु मे' मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ और सारे जीव मुझे क्षमा करें। सम्पूर्ण भूगोल और खगोल पर एकाधिपत्य चाहने वाले को 'परिग्रह-परिमाण के सूक्त' श्रमण संस्कृति ने ही दिए हैं। जहाँ शरीर भी परिग्रह है वहाँ संग्रह वृत्ति के लिए स्थान कहाँ? ऐसा उदार, करुणावतार तीर्थ कर वाणी का प्रसारकर्ता निर्मल मन, काय, वचन, दिखलाता, जन को मोक्षद्वार। सम्यकत्व - शिला पर लिखे यहाँ दर्शन ज्ञान-चरित्र-लेख, सम्पूर्ण विश्व को अभयदान देते जिन वाणी के प्रदेश। इसकी कल्पवृक्ष छाया में स्थित होकर मानव धर्म ने अपना सर्वस्व प्राप्त किया है। इस संस्कृति ने मानव को भक्ति मार्ग दिया, मुक्ति-पथ के रत्न सोपानों की रचना की और विश्व बन्धुत्व के भाव दिये। इसके आश्रय में पल कर मनुष्य ने अहिंसक समाज की रचना की और अपने को व्यसनों से मुक्त किया। व्रत-रहित-गन्तव्य मान से अजान मानव को व्रत-निष्ट किया तथा
SR No.022848
Book TitleAacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjaykumar Pandey
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2010
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy