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________________ लादीने तेह ॥६॥ कान दोय तेणे करमीया, बुचो थयो तिणी वार ॥ सांजली ब्राह्मण कोपीया, खोटो नील गमार ॥ ७॥ बार जोजन गंधे करी, बंदर नासे पूर॥ तेना कान केम करडीया, निडा तणे नरपूर ॥ ॥ एहवी अचेतन जेहने, दुर्गंध दीसे क्रूर ॥ तेहने कहो किम लीजीए, शानमीये केम नूर ॥ ए॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो विप्र सुजाण ॥ एक दोष मंजारनो, अवर गुणनी खाण ॥ १०॥ विप्र वदे ए | केम घटे, श्रावण विणसे दूध ॥ स्नेह तूटे लोज खल्पथी, विचारी जुन निज बुद्ध ॥ ११॥ सुगंधी वस्तुमां एक कली, लसण करे उगंध ॥ गुण घणा शुं कीजीए, एक दोष टले बंध ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे हिज सुणो, जो कीजे वादनी वात ॥ मिजार दोष हुं परहरुं, तो हिज करे मुज घात ॥१३॥ सत्य वचन मुज नाषतां, लोक न माने श्राज॥ कदाग्रही राजकुमर परे, केम कीजे हिजराज ॥१४॥ ___ढाल बीजी. | तुमे पितांबर पहेरी श्राव्याजी, मुखने मरकलडे-ए देशी. सकल वामव बोल्या वाणीजी, नाश्तुमे सांजलो॥पुलिंद तमे गुण खाणीजी ॥१॥ कदाग्रही पुरुष ते केहवोजी॥ना॥तेहनो गुण हतो जेहवोजी ॥ जाण ॥ वात सुणावो
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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