SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मपरी सुणो ए, अव्य लश् आपो मीन सा॥ मनोवेग कहे परीक्षा करी ए, खेळ पळे कहेशो हीन ॥ सा० ॥ ॥ एक कहे साचुं सही ए, घट मांहीथी काढ्यो तेह ॥सा॥ द्विज सहुए मीनो नीरखी ए, बुचो रुधिर जों देह ॥ सा० ॥ २३ ॥ विप्र जणे सुण, नीलमा ए, मीनमो बुचोसें कान ॥ सा ॥ रुधिरालो दीसे वली ए, कहो कारण गुणवान॥ सा० ॥२४॥पहेली ढाल बीजा खंडनीए, रंगविजय कविराय॥सा॥ तस शिष्य नेमविजय कहे ए, वात सुणो चित्त लाय ॥ सा ॥ २५॥ उहा. मनोवेग कहे सांचलो, वनवासी अमे नील ॥ अपूरव दीगे मीनमो, लीधो | लाजाणी गुण मील ॥१॥ पाली पोषी मोटो कर्यो, अव्य जोइए ने आज ॥ घटमां घाली. मीनमो, श्राव्या वेचवा काज ॥२॥ नूमि पणी चाली करी, श्राव्या वाडव गाम ॥ दिवस गयो रजनी थक्ष, विश्राम रह्या एक गम ॥३॥ थाक्यो नूख्यो मीनडो, घट थकी काढ्यो दीन ॥ एक गमे पमी रह्यो, निडा श्रावी खेद खीन ॥४॥ अमे सुता निडावशे, नीकली लंदर श्रेण॥ सुतो दीगे मीनडो, मूषक मली करे केण ॥५॥y सबल शत्रु ने आपणो, फुःखी कीजे एह ॥ मोटो उंदर भावीयो, (मीनो) सुतो ॥३१॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy