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________________ धर्मपरी ॥१३॥ बुटण तणो उपायरे ॥ क० ॥७॥ जोवन मद मतवाला मुंरख जे, नवि मान्युं मुज वयणरे ॥ तेह तणां फल ए प्रत्यक्ष, देखो श्रापणे, नयणरे ॥ क० ॥ ॥ श्रण-IN जाणे अथवा परमादे, कारज विणतुं संजालरे ॥ पडे प्रयास होये विफल सघलो, जल गये बांधी पालरे ॥ क० ॥ ए ॥ दीन वचने बोले दादाजी, तुमे बो बुद्धिनिधानरे ॥ दया करी निज बालक उपरे, दीजे वंडित दानरे ॥ क० ॥ १० ॥ प्राण रहित सरीखा थ रहेजो, सघले मानी शीखरे ॥ परमाते देखी ते पापीयो, चिंते नांगी नीखरे ॥ क० ॥ ११॥ हंस सकलने हेग नाखीया, उड्या ते समकालरे ॥ मान्युं वचन वमानुं तेमणे, पाम्या सुख विशालरे ॥ १५ ॥ गाथा-दीहकालंठीया जब, पायवे निरुवदवे। मुला उठीयावती, जायं सरणं उजयं ॥१॥ __गाथा एह कही वडे हंसे, समजो राय मयालरे ॥ कथा पहेली संपूरण ए कही, समजो श्रोता दयालरे ॥ क० ॥ १३ ॥ सातमा खंड तणी ढाल त्रीजीए, समजाव्यो राय सुजाणरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय परमाणरे क० ॥ १५ ॥ ॥१३५॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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