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________________ सातमे, सांजलजो सहु नर नार ॥ स० ॥ रंगविजय कविराजनो, नेमविजय जयकार ॥ सा सं० ॥ १॥ उहा. चालो जोवा जाइए, बोले श्रेणिक राय ॥ अजयकुमार वलतुं कहे, नावे मारे दाय ॥१॥ नारी जाति मली तिहां, पुरुष नहीं ले बेक ॥ श्रापण केम जश्ए तिहां, मनमा धरो विवेक ॥२॥ इति पांच जीती जीके, ते विनयी कहेवाय ॥ गुणवंत कहीए ते नरा, सहु जनमां पूजाय ॥ ३॥ राजा कहे परधानने, हुं बुं इंज समान ॥ लोको शुं करशे मने, बलवंत ढुं. राजान ॥४॥प्रधान वलतुं एम कहे, अजिमान जान कीजे फोक ॥ परजा थकी सुख पामीए, कुःख न दीजे लोक ॥५॥ वली नर पति एम उचरे, घणे न सीजे काज़ ॥ सूरज जग्यो एकलो, तारा जाये जाज ॥६॥ प्रधान कहे नरपति तमे, बहुशुं न करो वेर ॥ घणां मली कल्याण करे, घणांधी उपजे फेर ॥ ॥ ते उपरे कथा कहुँ, सुजोधन नृपनी वात ॥ बातो मन शीतल जाकरे, वात करे उतपात ॥७॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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