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________________ धर्मपरी० ॥ १३१ ॥ खं मो. उदा. एकदा पाटलीपुर जणी, विहार करंता एम ॥ श्राव्या श्रार्यसुहस्ती सूरि, परिवारे करी तेम ॥ १ ॥ वनपालक दे वधामणी, संप्रति राजा जणी जाय । सघलो साथ लेइ करी, वंद श्राव्यो राय ॥ २ ॥ द्विज श्राव्या सघला मली, सुणवाने उप| देश || गुरु कहे मूल बे धर्मनो, समकित मर्म विशेष ॥ ३ ॥ समकित विण शिवपद नहीं, सांजलजो सहु कोय ॥ श्रण सहित क्रिया लप, बहु फलदायक होय ॥ ४ ॥ जिनवरदेव सुसाधु गुरु, केवली जाषित धर्म ॥ सदहीए सुधां सहित, ए सम कितनो मर्म ॥ ८ ॥ तेणे कारण नवियण तुमे, वारी विकथा वात ॥ एक मना अवधारजो, सम कितनां अवदात ॥ ६ ॥ ढाल पहेली. समुद्रपाल मुनिबर जयो-ए देशी. जंबुद्वीप जरत क्षेत्रमां, एसो मगध देश मनोहार ॥ समे ही ॥ राजग्रही नयरी राजा खंग 3 ॥ १३१ ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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