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________________ ति निहालीए ॥ १५ ॥ एकादश हो प्रतिमा ए सारके, श्रावकनी शुद्धि कही ॥ सांजलीने हो हरख्यो कुमारके, पवनवेगे मन दृढ ग्रही ॥ १६ ॥ पवनवेग हो पवित्र व्रतधारके, जैनधर्म लीधो खरो ॥ दोय मित्रज हो आनंद दुवो सारके, जव्य जीव धर्म स्नेह धरो ॥ १७ ॥ व्रत पालीने हो श्रायुषा ांतके, बेहु मित्र स्वर्गे गया । पाम्या घणी हो देवीनी रिद्धके, देवीशुं जोग सुखीया यया ॥ १८ ॥ श्रवतरीने हो पामशे मनुष्यनो जन्मके, चारित्र पाली जिन तयुं ॥ ष्ट करमनो हो वली करीने घातके, मोद लक्ष्मी पामशे घणुं ॥ १५ ॥ हीर विजय सूरि हो तपगछ मंमाणके, शुज विजय शिष्य जाणीए ॥ जावविजय हो जगमें जयवंतके, सिद्धि विजय परमाणीए ॥ २० ॥ रूपवि जय हो रूपर्वत कहेवायके, कृष्णविजय कर जोमीने ॥ रंगविजयने हो प्रणमुं निशदीसके, अंग बड़े अंग मोमीने ॥ २१ ॥ खंग बडो हो पूरो थयो आजके, ढाल अग्यारे सुणो सही ॥ नेमविजये हो उलट मन आणके, वात छानोपममें कही ॥२२॥ इति धर्मपरीक्षा से षष्ठोऽधिकारः संपूर्णः ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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