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________________ धर्मपरिणा ॥१२॥ लाग्या सुख पात्र हो जा॥ बेहुनो सरखो मल्यो जोग, राति दिवस माणे नोग हो|| संग १ ना॥१६॥ एम करतां चारे मासे,गया बेहु जण बेसी विमासे हो ॥ना॥ श्रावशे तुम जव प्यारो, तव मुजने मेलशो न्यारो हो ॥ ना॥ १७ ॥ एकांते बेहु जण बेसी, वात करतां नारीव्हेसी हो ॥ना॥ तुमे दिलगीर मत था, मेदूं नहीं जीव जो जाउ हो । ॥ना ॥२०॥प्रपंच करुं एक एडवो, आपण नेलां रहुं तेहवो हो ॥ना॥ तो मुजने साची जाणो, तुमे दुःख हश्ए मत श्राणो हो ॥ जा॥ रए ॥ जगनदत्ता तव चाली, मध्य रात्रि काली करवाली' हो ॥ला पहेला खंमनी सातमी ढाल, नेमविजय कहे ततकास हो ॥ जाण ॥२०॥ उदा. मसाणमा गइ एकली, श्राण्यां ममां बे रंग ॥ एक मूक्युं निज ढोलीए, श्रवर उंटला चंग ॥१॥धन सघलो काढी लीयो, घरे लगावी याग ॥ मध्य रात्रि दो। नीकक्ष्यां, चाव्यां उत्तर नाग ॥२॥ मंदिर लाग्यु अति घ, मलीया लोक अपार ॥ करता हाहाकार त्यां, सर्व बल्यु तेषी वार ॥ ३ ॥ जल गंटीने उलव्यु, बल्यां दीगं| १ तरवार.
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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