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________________ णीयो, पूर्वे यम पुत्र पद ॥ १ ॥ राक्षसने स्नेह उपन्यो, राक्षसी विद्या दीध ॥ नवसर हार थाप्यो जलो, नव मुख दीसे मांही सीध ॥ ३ ॥ मेघवाहन लंका द्वीप, सातसें जोजन मान ॥ त्रिकुट गढ नव जोजन लगे, बत्रीश जोजन पुर यांन ॥ ३ ॥ उत्र मुगट धजादिक शीरे, राक्षस लांबन सोय || जीम महाजीमे सहु दीयो, मेघवाहन लंकापति मोय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल चोथी . एम विसरे सुखां, वालाजीना जोवा मुखमा ॥ मुखडे मोह्यारे इंदा, वदन कमल जाणे शारद चंदा-ए देशी. मेघवाहन राणी तनुमती, महा राक्षस सुत दुवो शुभ मति ॥ गुणवंती राणीना पुत्र बेह, जानु राक्षस देव राक्षस तेह ॥ १ ॥ समुद्र मांही द्वीप अनेक, लोक व | साव्या ते विवेक ॥ जानु राक्षस देव राक्षस केडे, एकसठ राजा गया बे तेडे ॥ | २ || कीर्तिधवल राजानो वंश, लंका राज करे परशंस || लक्ष्मीमती बे राणी तास, सुख जोगवे करेय विलास ॥ ३ ॥ रतनसंचय पुर दक्षिण श्रेण, श्रीकंठ खगपति राजा तेण ॥ तिहांथी लंकापुरी याव्यो, बेन बनेवी मलवा धायो ॥ ४ ॥ कीर्तिधवल
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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