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________________ खम ३ NAMAMMARTINDIANRAINING RAHAKAALAM धर्मपरी ब्रह्मा अखंगरे ॥माण्॥१०॥ ब्रह्मानो काश्यपी ऋषिजात, काश्यपथी काश्यपी ऋषि संघा- ॥ एता तरे ॥ मा० ॥ काश्यप ऋषि पतनी हु तेर, दीतीए जाया दैत्य दाणव ढेररे ॥ मा०॥ ॥ १५ ॥ श्रादितिथी उपन्या अपार, तेत्रीश क्रोम देव सुत साररे ॥ मा०॥ कमुए जाया नवकुली नाग, वनिता सुत गरुम विषनागरे ॥ मा० ॥ २० ॥ सुप्रनाए पुत्री जणी सात, नवसे नवाणुं नदी विख्यातरे ॥ मा ॥ एकीए जणीया छीपज सात, साते सागर जाया एकीए रातरे ॥ मा० ॥१॥ एकीए जाया पर्वत वृंद, सेना ब्राह्मणी जणीया चंदरे ॥ मा० ॥ एकीए सहुए सूरज जाया, तारा ग्रह नक्षत्र बहु मायारे॥ मा० ॥ २२ ॥ हव्यकाए जाया ऋषिवर खाम, अव्याशी सहस्र तणां ने नामरे । मा० ॥ खडनेत्री जणीया चारे खाण, खेद अंग जरा अदबुद जाणरे ॥ मा० ॥ ३ ॥ चार खाणथी चोराशी लाख, जीव योनिनी उत्पत्ति जाखरे ॥ मा० ॥ बेतालीश लाख थलचर जोय, जलचर ननचर बाकी होयरे ॥ मा० ॥ २४ ॥ जीव थकी उपन्या जुग चार, कृत त्रिता छापर कलि साररे ॥ मा॥ एणी परे सृष्टि तणो ने लाग, मिथ्यादृष्टि कह्यो विनागरे ॥ मा० ॥ २५ ॥ खंम त्रीजानी सातमी w wwsawaimms
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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