SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 ढाल, सुणजो सहु बाल गोपालरे ॥ मा० ॥ रंगविजय शिष्य एम जाखे, नेमविजय गुण एम दाखेरे ॥ मा ॥ २६ ॥ उदा. KI मनोवेग कहे सांचलो, पवनवेग गुणवंत ॥ मूढ मिथ्यातनी वारता, आप विगोए एकंत ॥१॥ ढाल आठमी. वणकारानी देशी. मारा नायकरे, विष्णु ब्रह्मा बेह, वाद वदे स्मृष्टि कारणे॥मा०॥ब्रह्मा कहे सृष्टि एह, में स-1 रजी सुख कारणे॥माणा॥मा॥ विष्णु वदे मुज तषी सार, सृष्टि रदा करूं अमे खरी मा० ॥ मा०॥जुग काजे वलगतातेह, शंकर पासे गया मन धरी ॥ मा० ॥२॥ मा॥ कहो ईश्वर महाराज, श्रमे बेहु मांहे सृष्टि केहु तणी ॥ मा० ॥ मा० ॥ शंकर कहे सुणो ब्रह्मा विष्णु, मुज लिंग डे जाए ते धणी ॥माण॥३॥मा॥ ब्रह्मा तुमे जाउँ उर्ध लोक, मुज लिंगनो अंत ज्यां होये ॥ मा० ॥ मा० ॥ विष्णु जाउँ अधो लोक, लिंग
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy