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________________ वचन सुणी राजा तव हरख्यो, सत्य वाणी एहसार॥प्रत्यक्ष दीतुं तो नवि कहे, नवि माने मूढ गमार ॥ स ॥२३॥त्रीजा खंम तणी ढाल बीजी, कही श्रोताजन सारु ॥ रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥ स० ॥ ॥ उहा. हरिजनी कथा रुयमी, विप्र सुणी तमे तेह ॥अद्लुत वचन मुज बोलतां, तामन करशो देह ॥१॥ते वामव तव बोलीया, सांजलो नानूर ॥ सत्य वचन तुम बोलतां, श्रमे नवि थारुं क्रूर ॥२॥ माया मुनि तव बोलीयो, मनोवेग वर वाण ॥ कथा कडं वली मुज तणी, सुणजो तेह सुजाण ॥३॥ ढाल त्रीजी. केसर वरणो हो के काढी कसुबो मोरा लाल-ए देशी. श्रीपुर नगरे हो वणिकोत्तम नाम ॥ मारा लाल ॥ जिनदत्त शेठ हो श्रावक कुलदात ॥ मारा लाल ॥ जिनदत्ता नामे हो कहीए तस नारी ॥ मारा ॥ तेहनो हुं पुत्र हो गुणवंत धारी॥मा ॥१॥ माहरो नाम दीधो हो जिनचरणदास ॥मा॥ जणवा मूक्यो हो मुनिवर पास ॥ मा ॥ नणी गणीने हो विद्या अनेक ॥ मा० ॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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