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________________ धर्मपरीनाटक करे मीग ॥ स ॥ १४ ॥ रमवा राजा वनमां गयो तेहवे, राणीशुं प्रेम धरंतो || खंग ॥ एकलो वनवाडी ज जोश, दीगे वानर नृत्य करंतो॥स० ॥ १५ ॥ नव रस नाटक || ॥७ ॥ जोतां नहीं तृपति, श्रावोराणी जुन एह॥साद सुणी राजा तणो बीना, वानर नाग तव तेह ॥स॥१६॥ राणीने श्रावी नृप कहे सुंदरी, वानरनृत्य देख्यु सार ॥ राजसजा श्रावी नृप बेगे, प्रोहित सहु परिवार स॥१७॥ राजा कहे सहुको सांजलजो, कौतिक दी में आज ॥ नव रस नाटिक वानर करता, जोतां थका सीजे काज ॥ स० ॥ १७ ॥ तव राणी कहे में नवदीवं, सुणजो लोक विचार ॥नवी दीवं सांनट्युं श्राज पहेलु, नूपति ऊंखे असार ॥ स ॥ १७ ॥ हरि प्रोहित कहे सांजलो सङान, राजाने वलगाड वन मांहीं ॥ ए वचने ताणी नृप बांध्यो, नोपा वैद मल्या त्यांहिं॥ स० ॥२०॥ धूणे धंधोले अंग पबगडे, हरिनट्ट निवार्या तेह॥ निज हस्ते राजाना बंध जोड्या, वस्त्र विनूषित देह ॥ स ॥ २१ ॥प्रोहित जाणे नूपति सुणो लोका, वानर नाटिक जेम वारु॥ नदी मांहे तरती थकी दीठी, तेम शिला सत्य मन धारं ॥ स ॥२॥ श्लोक-संजाव्यं न वक्तव्यं, प्रत्यक्षमपि यद्नवेत् ॥ ॥३०॥ यथा वानरसंगीतं, तथा सा तरति शिला ॥१॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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