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________________ रुद्र कहे कन्या सुणो, पिता जणी पूढो खाज ॥ वस्त्र विभूषण तुम तणां, लेइ करजो काज ॥ १० ॥ ढाल एकवीशमी. करेलमां घर वेरो—ए देशी. कुमरी ते तव तिहां गर, पिता तो ते पास ॥ वात विचारी सदु कही, विवादनी ते वास ॥ सुगुण जन सांजलोरे ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ विद्याधर देवदारुए, मोकल्या तव प्रधान ॥ रुद्र पासे यावी कहे, सांजलजो सावधान || सु० ॥ २ ॥ विद्युत विद्याधर अम तणो, मोटो रिपु राज ॥ राज लीधुं वे यम तणुं, तेहने मारो खाज ॥ सु० ॥ ३ ॥ काज करो जो श्रम तणो, कन्या देशुं तेह ॥ रुद्धे तव तेहने कयुं, काज करीशुं एह ॥ सु० ॥ ४ ॥ विद्याए विमान रची, करी कटक अपार ॥ विजयार्थे वेगे जइ, मांड्यं जुद्ध कुकार ॥ सु० ॥ ५ ॥ विद्युत तव सामो थयो, करे सुर संग्राम ॥ रुद्रे रूप घणां करी, फेड्यो तेहनो गम ॥ सु० ॥ ६ ॥ विद्याए विजांमीयो, सहुनो कीधो घात ॥ त्रिपुर नगर तेणे जालीयुं, लघु मार्यो तिहां जात ॥ सु० ॥ ७ ॥ देवदारु राजे ठवी, कीधो यति उच्छाद ॥ विद्याधर सहु जेटीया, मांड्यो तिहां विवाद ॥ सु० ॥ ८ ॥ कुमरी परणी आठ ते, रुडे
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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