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________________ धर्मपरी ॥ ४॥ ढाल वीशमी, श्रोताजनने काज हो॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय लहे लाज ||| खम १ हो ॥ हो ॥१॥ उहा. -हेमरथ बहु तप करे, पाले पंचाचार ॥ राज करे ते रुअमो, देवदारु कुमार ॥१॥ विद्युते विश्वास करी, तव मांड्यो संग्राम ॥ वमो ना बंमावीयो, निज राज्यनो गम ॥२॥ कैलासे नासी गयो, देवदारु कुमार ॥ ऽव्य कुटुंब विमान रची, आव्यो सहु परिवार ॥ ३॥ श्राप कन्या तस रुयडी, रूपे रंना समान ॥ रमल करती सरोवरे, ग करवाने स्नान ॥ ४ ॥ श्राजरण वस्त्र मूकी करी, अंघोल करवा ताम ॥ रुखे दीठी रुयमी, कन्या रूप निधान ॥५॥ ते देखी विह्वल थयो, कामे पीड्यो अपार ॥ विद्याए वेगे करी, हाँ वस्त्र शणगार ॥ ६॥ कन्या कहे मुनिवर सुणो, श्रम देहनो शणगार ॥ तुमे बता कोणे अपहयां, कीदां ने स्वामि सार ॥७॥ रुख मुनि तव एम जणे, सांजकालजो तुमे बाल ॥ अंगीकार करो श्रम तणो, तो आपुं सुविशाल ॥ ॥ कन्या कहे ॥ ४॥ मुनि सांजलो, केम लोपीए लाज॥श्रमे विद्याधर बेटडी, पिता अणपूज्यां काज ॥ए॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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