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________________ कृषि उपरे ए, लिंग डेगुं मुज बाज तो॥ शंकरे शषि तव श्रापीया ए, लिंग पड्यां सर्व || काल तो ॥ १६ ॥ लिंग तुट्यां तापस तणां ए, वेदना व्यापी अंग तो ॥ वृहदल झषि सघला हुवा ए, हर शरणे गया चंग तो ॥ १७॥ शंकर खामि सांजलो ए, तुं मोटो महादेव तो ॥ कृपा करो श्रम उपरे ए, श्रमे करूं तुम सेव तो॥ १७ ॥ हरि हर ब्रह्मा तुं नलो ए, नुवन तणो तुं त्रात तो ॥ सरजी पाली पोषे घणुं ए, सेष्ट करे वली घात तो रए॥श्रघट काम श्रमे थाचर्यु ए, दमा करो तुमे एह तो॥ोरु कडोरु होये घणुं ए, GIमाबाप नहीं दीए लेह तो ॥ २० ॥ ढाल कही श्रढारमी ए, खंड बीजानी एह तो॥ रंगविजयनो शिष्य कहे ए, नेमविजयने नेह तो ॥ १॥ उदा. | नोलो शंकर बोलीयो, सांजलो तापस सार॥ लिंग अमारो वेश करी, व्वजो योनि मोकार ॥१॥प्रतिष्ठा करो तुमे तेह तणी, पूजा रचो सुखकार ॥ नाव नगति करो घणी, थाराधा नित्य सार ॥२॥ कामनीशुं सुख नोगवो, लिंग लागे तुम देह ॥ तापस तव सघले मली, लिंग धर्यु तिण तेह ॥ ३ ॥ नामा दोरे लिंग बांधायु, बल करे तापस१ विवेक ॥ हाल हाल करे घणुं, तव तुट्यां दोर अनेक ॥४॥ खांध नांग्या तापस तणा,
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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