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________________ धर्मपरी खम ॥६०॥ मोद धरे विश्वास तो ॥ ५ ॥ लांबु लिंग देखी करी ए, निदा घासे सार तो ॥ कंदम- ल वनफल घणां ए, हरने श्रापे नार तो ॥६॥ जरतार नगत बोमी करी ए, हीडे ईश्वर साथ तो ॥ सुंदरी कहे शंनु सजिलो ए, लीजे आपण बाथ तो ॥ ७॥ एक कहे| शंकर सुणो ए, उधरजो महाराज तो॥अंगे थालिंगन रुयमो ए, कृपा करी द्यो श्राज तो ॥॥ वनमां शंकर जश् रह्यो ए, ध्यान धरे अपार तो ॥ तापस कामनी तिहां गए, ईश्वरशंजोग विकार तो॥णातापस तव पुःखीया थया ए,नारीए मुक्यो संग तो॥विचार करे सघला मली ए, केम रहेशे घर रंग तो॥१॥ देवपूजा रही आपणी ए, अंगे गयां सनान तो ॥रांधण सिंधण सहु तज्यां ए, नूखे गया जीव ज्ञान तो ॥ ११॥ आपणने मूकी धरे ए, हरने सेवे नार तो ॥शंकरने केम श्रापीए ए, ए में त्रिजुवन तार तो ॥१॥ नारी मोही आपणी ए, जेह देखीने अंग तो ॥ दंम करो तुमे तेहनो ए, श्रापीने करो नंग तो ॥ १३॥ तापस मलीने श्रापीयो ए, लिंग पड्युं ततकाल तो ॥ जुवन मांहे ते का विस्तयुए, कर्म करे विकराल तो ॥ १४ ॥ लिंगे लक्षण प्रगट कीयो ए, त्रिभुवन पाड्यो । त्रास तो ॥ नर नारी संजावीयाए, लोक पामे बहु हास्य तो ॥ १५ ॥ रुष कोप्यो
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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