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________________ खंझ ५ धर्मपरीय ॥ तु०॥-नोग विलास हुवो रंग रोल, हर्ष प्रीत बेउ थाय ॥ तु ॥७॥ गर्न ॥५०॥ धर्यो कुंतीए तेणे अवसर, जोग करी क्लीयो नाण ॥ तु० ॥ कुमरी कहे किहां जा बो स्वामि, वृतांत कहो बांडी काण ॥ तु ॥ ए॥ हिजवर कहे सुणो सुंदरी कन्या, सूर्यदेव श्रम नाम ॥ तु० ॥ रूप देखी चित्त अम तणुं चलीयुं, विप्र हो कीधो काम | ॥तु॥ १० ॥ नुवन प्रकाश करुं दिन गगने, जावा द्यो मुज आज ॥ तु०॥ कुंती कहे हुं बुं बाल कुमारी, उधान रह्यो दिनराज ॥ तु ॥११॥ नासुर नणे नामनी तुम कूखे, पुत्र होशे दातार ॥ तु ॥ रूप कला बल बुद्धि विचक्षण, त्रीजा दिवस मोकार ॥ तु० ॥ १२ ॥ मंत्र अपूर्व वली श्रापुं तुमने, नर आकर्षण होय ॥ तु ॥ समरतां थावे सहु पासे, काज करशुं श्रापण दोय ॥तु॥१३॥ मंत्र आपी करी कुंती संतोषी, जानु गयो निज गम ॥ तु० ॥ कन्याए काने जण्यो सुत सुंदर, करण हुवो तेह नाम ॥ तु॥१४॥ मंझपकौशीक कहे सण तापसी, कंतीने नोगवे जेहतु॥ सरज देवता मोटो लंपट, बायाने केम बोडे तेह ॥ तु०॥ १५ ॥ ढाल बारमी खंड बीजानी, कही। श्रोता जन सारु॥तु॥रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥तु॥१६॥
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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