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________________ ढाल बारमी. दील लगारे वादल वरणी-ए देशी. सांजल तापसी जादव राजा, समुद्रविजय सुखकारी ॥ तुमे सुणजोरे ॥ श्रागे होइ जे वात, मूकी पर तणी तात ॥तुए श्रांकणी ॥ तेहनी जगनी कुंती कन्या, रूपे रंजा | अवतारी ॥ तु० ॥ १ ॥ चतुर्थ स्नान करवाने वाला, जमुना नदी गई तेह ॥ तु० ॥ वस्त्र विवर्जित स्नान करंती, सूर्यदेवे दीठी तेह ॥ तु० ॥ २ ॥ रूप देखी तब मदने पीड्यो, विप्र वेश वेगे लीधो ॥ तु० ॥ कषांवर पेहेर्यां जनोइ श्रारोपी, सर्वांग तिलकज कीधो ॥ तु० ॥ ३ ॥ राम राम मुख बोलतो निरमल, श्राव्यो कुंतीनी पासे ॥ तु० ॥ श्रशिर्वाद देश करी जंपे, सांजलो कुमरी उल्लासे ॥ तु० ॥ ४ ॥ काम क्रीडा श्रमशुं तमे खेलो, जोवननो लादो लीजे ॥ तु० ॥ कुंती कहे कुमारिका श्रमे तुं, घट काम किम कीजे ॥ तु० ॥ ५ ॥ द्विज रूपी सूरज वदे वाणी, सांजलो कुमरी प्रजाप ॥ तु० ॥ उत्तम वर्ण ब्राह्मण वेद जाण, विना नवि धरुं प्राण ॥ तुप ॥ ६ ॥ पवित्र पात्र श्रमे जगत् प्रसिद्धा, अमने थापे जे दान ॥ तु० ॥ पाप जाय सुख संपत्ति पामे, | स्वर्ग लोके लहे मान ॥ तु० ॥ ७ ॥ विप्र वचन कुमरी मन मान्युं, स्वस्ति जणावी का
SR No.022846
Book TitleDharm Parikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1913
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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