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________________ 58 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन उसके पश्चात् महाराज सुग्रीव ने उनका विवाह करके राज्याभिषेक कर दिया। पचास हजार पूर्व और अट्ठाईस पूर्वांग तक वे सुखपूर्वक राज्य करते रहे। एक दिन उल्कापात देखकर उनको आत्मज्ञान हो गया और उन्होंने राज्यलक्ष्मी का त्याग कर दिया। अपने पुत्र सुमति का राज्याभिषेक करके दीक्षा अंगीकार कर ली। सूर्यप्रभा नामक पालकी में बैठकर वे पुष्पकवन में गए और मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन सायंकाल में बेला का नियम लेकर एक हजार राजाओं के साथ दिक्षित हो गए। दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्यय ज्ञान हो गया। केवलज्ञान : सुविधिनाथ जी दीक्षा के पश्चात् चार वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में तपस्या करते हुए विचरण करते रहे। उसके पश्चात कार्तिक शुक्ला द्वितीया के दिन सायंकाल के समय मूल नक्षत्र में दो दिन का उपवास लेकर नागवृक्ष के नीचे ध्यान में स्थित हुए। वहीं उन्होंने चार घातिया कर्मों को नष्ट करके अनन्तचतुष्टय रूप केवलज्ञान को प्राप्त किया। धर्म-परिवार : भगवान सुविधिनाथजी के सात ऋद्धियों को धारण करने वाले 88 गणधर थे, 1500 श्रुतकेवली थे, 1,55,500 शिक्षक थे, 8400 अवधिज्ञानी थे, 7000 केवलज्ञानी और 13000 विक्रिया ऋद्धिधारक थे, 7500 मनः पर्ययज्ञानी और 6600 वादी थे। इस प्रकार सब मिलाकर 2 लाख श्रमण उनकी आज्ञा में विचरते थे। घोषार्या आदि 3 लाख 80 हजार आर्यिकाएँ उनके तीर्थ में थीं। 2 लाख श्रावक तथा 5 लाख श्राविकाएँ उनके अनुगामी थे। असंख्यात् देव तथा संख्यात तिर्यंच उन्हें वन्दन करते थे। निर्वाण : इस प्रकार 12 सभाओं से पूजित भगवान सुविधिनाथजी आर्य देशों में विहार करते हुए अन्त में सम्मेद शिखर पहुँचे। वहाँ वे भाद्रशुक्ला अष्टमी के दिन मूल नक्षत्र में सायंकाल के समय योग निरोध करके एक हजार मुनियों के साथ मोक्षगामी हुए। 10. शीतलनाथ जी : जम्बद्वीप भरतक्षेत्र में मलय नाम देश में भद्रपुर नगर में इक्ष्वाकु वंशीय राजा दृढ़रथ राज्य करते थे। उनकी महारानी सुनन्दा ने चैत्रकृष्ण अष्टमी के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में रात्रि के अन्तिम प्रहर में चौदह स्वप्न देखे, तभी प्रभु शीतलनाथ जी माता के गर्भ में अवतीर्ण हुए। नवमाह व्यतीर' होने पर माघ कृष्णा द्वादशी के दिन विश्व योग में प्रभु ने जन्म लिया। देवेन्द्रों ने सुमेरु र्वत पर ले जाकर उनका महा अभिषेक किया और शीतलनाथ नामकरण किया।” शीतलनाथ जी का वर्ण सोने जैस था और शरीर नब्बे धनुष का था। उनकी आयु एक लाख पूर्व और दीक्षा पर्याय पच्चीस हजार पूर्व थी। सुविधिनाथजी और
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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