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________________ उपसंहार मानव सदियों से अपने अस्तित्व एवं विकास के इतिहास को जानने का प्रयास करता रहा है। प्रत्येक देश और धर्म का अपना इतिहास होता है। इतिहास तथ्यों का संकलन मात्र नहीं है, अपितु समाज और काल विशेष के परिप्रेक्ष्य में उत्थान और पतन, विकास और अवनति, सामाजिक संरचना व संगठन की पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करता है। वस्तुतः धर्म-दर्शन का इतिहास समाज का ही इतिहास होता है, क्योंकि धर्म धार्मिकों के नैतिक आचार और आदर्शों में ही परिलक्षित होता है, जो उनकी सामाजिक मान्यताओं व परम्पराओं के अनुरुप ही होते हैं। धर्म के इतिहास का एक प्रयोजन काल-विशेष में विशेष धार्मिक समुदाय की सामाजिक और नैतिक व्यवस्था को भी समझना है। भारतीय समाज में व्यक्ति व समूह के जीवन की सभी प्रमुख अवस्थाएँ धार्मिक आधार पर नियोजित रही है। जाति, परिवार, नैतिक जीवन, आर्थिक संस्थाएँ, मान्यताएँ, विश्वास इत्यादि सभी संस्थात्मक व सामाजिक सम्बन्धों में धार्मिक मान्यताएँ, अनुष्ठान व विधियाँ जीवन को नियन्त्रित व समायोजित करती है। धर्म का सम्बन्ध प्रत्येक व्यक्ति से किसी न किसी रूप में रहता है, क्योंकि धर्म व्यक्ति के जीवन के सर्वांगीण पक्षों से जुड़ा रहता है। अतः उसके आधार पर सामान्य आचार, आचरण, विचार को अधिक सार्थक रुप से समझा जा सकता है। धर्म का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विधिवत रुप से अध्ययन करने का प्रयास बहुत कम ही हुआ है। बुद्धिजीवी प्रायः ऐतिहासिक पक्ष की अपेक्षा उसके दार्शनिक पक्ष को ही उजागर करने में अधिक अभिरुचि रखते हैं। जबकि धर्म के माध्यम से समाज को समझने की प्रक्रिया ज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण विधा है। मानवशास्त्रियों ने आदिवासी समाज के अध्ययन में इस विधा का प्रयोग किया है, लेकिन अन्य विकसित जटिल समाजों में इस विधा के आधार पर अध्ययन नगण्य है। एक ऐसे धर्म-दर्शन का ऐतिहासिक अन्वेषण किया जाना तो आवश्यक है, जो मानव संस्कृति व सभ्यता के विकास में सहायक ही नहीं रहा है वरन् जो उसका उद्गम स्त्रोत कहा जा सकता है। जो मानव संस्कृति का आद्य-प्रणेता रहा है, इतने महत्वपूर्ण धर्म दर्शन को भी आज अपनी प्राचीनता के प्रमाण देने पड़ते हैं। इसका कारण दर्शन के ऐतिहासिक पक्ष की ओर उपेक्षा भाव ही प्रतीत होता है। जबकि वह
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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