SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 470 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन ईमानदारी एवं प्रामाणिकतापूर्वक जीवन निर्वाह के लिए अर्थ-चिन्ता करे। सायंकाल सूर्यास्त से पूर्व ही भोजन-पान से निवृत्त हो जावे। इसके बाद गुरु महाराज के पास बैठकर तत्त्वचर्चा करे। परिजनों के साथ धर्म चर्चा करे, महापुरुषों के चरित्र का स्मरण करे। तत्पश्चात् विषय विकार उत्तेजित न हो, ऐसा चिंतन करे। 8. श्रावक के तीन मनोरथ : श्रावक रात्रि में निद्रा लेने से पूर्व विषयों को जीतने के लिए विचार करे, कि1. जिन धर्म के साथ दासत्व मिले तो भी अच्छा है, किंतु धर्म से रहित चक्रवर्तीपन भी नहीं चाहिये। 2. कब मैं संवेगी, वैराग्यवान गीतार्थ गुरु के चरणों में संसार का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करूँगा? 3. मेरे अन्दर ऐसी शक्ति कब जाएगी, कि मैं उग्र तपश्चर्या करता हुआ, श्मशान आदि में जाकर विधि पूर्वक कायोत्सर्ग करूँगा?" 9. श्रावक के तीन कर्म : 1. असिकर्म : तलवार, बन्दूक, चाकू आदि शस्त्रों की संख्या रखकर नियम करना। 2. मसि कर्म : कागज, कलम, दवात आदि का प्रमाण करना। 3. कृषि कर्म : खेत, बगीचा आदि का प्रमाण करना। 10. श्रावक के पर्व कृत्य : श्रावकों के लिए जैन धर्म की दृष्टि से कुछ धार्मिक पर्व आते हैं, जो निम्नलिखित हैं कल्याणक तिथिक कृत्य : अष्टमी, चतुर्दशी आदि तथा कल्याणक तिथियों (तीर्थंकरों के जन्म, दीक्षा एवं निर्वाण दिवस) पर उपवास पौषध आदि करें। पौषध उपवास न हो सके तो आयंबिल, एकासन आदि यथाशक्ति करें। सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन, सुपात्रदान, देवपूजा, गुरु भक्ति आदि अवश्य करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। आरंभ-समारम्भ का त्याग करें। 2. चातुर्मासिक कृत्य : चातुर्मास में जीवोत्पत्ति अधिक होती है। अतः जीवोत्पत्ति अधिक हो, ऐसी वस्तुएँ न खाएँ। अभिग्रह धारण करें, दिन में तीन बार जल छानें । यथाशक्ति उपध्यान तप प्रतिभा वहन करें। 3. अक्षय तृतीया : अक्षय तृतीया का सम्बन्ध आद्य तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से है। उन्होंने वैशाख सुदी तृतीया के दिन बारह महीनों की तपस्या का ईक्षुरस से पारणा किया। इसलिए उसे ईक्षुतृतीया अथवा अक्षय तृतीया कहते हैं। 4. पर्युषण व दसलक्षण पर्व : पर्युषण पर्व आराधना का पर्व है। भाद्र बदी
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy