SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 458 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन रूप से पालन नहीं कर सकते। अतः उन व्रतों को श्रावक आंशिक रूप में ही धारण करते हैं, जिन्हें अणुव्रत कहते हैं। अणुव्रत पाँच प्रकार के है - 1. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत : श्रावक द्वारा ग्रहण किए गए अहिंसा अणुव्रत का स्वरूप इस प्रकार से है, कि "मैं जीवन पर्यंत मन, वचन, काय से स्थूल हिंसा न करूँगा और न किसी द्वारा कराऊँगा।"31 जैन धर्म में क्रिया की अपेक्षा भवना की प्रधानता है। अतः किसी प्राणी का जीवन समाप्त कर देना ही हिंसा नहीं है, अपितु अन्य प्राणी के जीव संरक्षण के प्रति हृदय में असद् भावना पैदा होना ही हिंसा है। श्रावक भी अहिंसा राष्ट्रों की आन्तरिक शासन प्रणाली में आमूल परिवर्तन तथा सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्थाओं में संशोधन की ओर संकेत करती है। अहिंसा अणुव्रत का धारक श्रावक जहाँ मनुष्य मात्र के प्रति प्रगाढ़ स्नेह एवं सहायता की भावना से ओत-प्रोत रहता है, वहाँ वह पशु जाति के प्रति भी अत्यन्त सहानुभूतिपूर्ण होता है। श्रावक अपने व्रतों का निर्दोष रूप से पालन कर सके इसके लिए प्रत्येक व्रत के पाँच-पाँच अतिचार बताए गए हैं। श्रावक के जो कार्य व्रत में दूषण लगाते हैं, वे अतिचार कहलाते हैं। अहिंसा अणुव्रत के पाँच अतिचार निम्नलिखित हैं 1. बंध (बंधन) : पशुओं को कठोर बन्धनों से बाँधना 2. वहे (वध): उनको लाठी आदि से पीटना। 3. छविच्छेए (छविछेद) : उनके नासिका आदि अंगों को छेदना। 4. अइभार (अतिभार) : उनके ऊपर अतिभार लादना। 5. भत्तपाणविच्छेए ( भक्तपान विच्छेद) : उनको यथासमय व पूर्ण भोजन व पानी न देना। श्रावकों को इन अतिचारों से बचना चाहिये। 2. स्थूल मृषावाद विरमणव्रत (सत्य ) : सत्य अणुव्रतधारी श्रावक जीवन भर के लिए दो करण व तीन योग से स्थूल मृषावाद का त्याग कर देता है अर्थात् वह मन, वचन तथा काया से किसी प्रकार का झूठ न स्वयं बोलता है और न किसी अन्य से बुलवाता है। इस व्रत के निर्दोष पालन के लिए भी पाँच अतिचार बताए गए हैं - 1. सहसभक्खाणे (सहसा अभ्याख्यान) : बिना सोचे-समझे किसी भी बात को कहना। 2. रहसभक्खाणे (रहस्याभ्याख्यान) : किसी का रहस्य प्रकट कर देना। 3. सदारमंतभेए (स्वदारमंत्रभेद) : अपनी स्त्री की गुप्त बातों को प्रकट कर देना। 4. मोसोवएसे (मृषाउपदेश) : झूठा उपदेश देना।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy