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________________ 442 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन होने पर भी अनाचार विरत संयमी साधु कदापि सचित जल का सेवन न करे, अपितु अग्नि आदि के संयोग से प्रासुक बने हुए पानी की एषणा के लिए विचरे 168 3. शीत परीषह : शीतकाल में ठंड लगे तो शीत एवं वायु से बचाने वाले मकान आदि मेरे पास नहीं हैं और न मेरे पास शरीर की रक्षा करने वाले वस्त्र-कम्बल आदि हैं, इसलिए मैं तो अग्नि का सेवन कर लूँ, इस प्रकार साधु सेवन करना तो दूर विचार भी न करे। शीत से बचने के लिए एक स्थन से दूसरे स्थान पर भी न जावे । 4. उष्ण परीषह : आगभोक्त मर्यादा का अनुसरण करने वाला साधु उष्ण स्पर्श या गर्मी से अत्यन्त पीड़ित होने पर भी स्नान की अभिलापा न करे, शरीर को जल से न भिगोवे और अपने शरीर पर पंखे आदि से हवा नहीं करे ।" 5. दंशमशक परीषह : महामुनि दंशमशक परिषह से पीड़ित होते हुए भी क्रोधित न हो। मांस और रक्त को चूसते हुए डाँस - मच्छर आदि जीवों को मारे नहीं और न ही उन्हें कष्ट पहुँचावे तथा उन्हें रोक कर अन्तराय भी न करे और मन से भी उन पर द्वेष न करे, अपितु समभाव रखें।" 1 6. अचेल परीषह : साधु को वस्त्रों के प्रति मोह नहीं होना चाहिये । वस्त्रों के जीर्ण हो जाने पर मैं वस्त्र रहित हो जाऊँगा, इस प्रकार अथवा वस्त्र सहित हो जाऊँगा, साधु इस प्रकार विचार न करे।" 7. अरति परीषह : ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहत्यागी, परिग्रह रहित साधु के मन में यदि कभी अरति (संयम में अरुचि) उत्पन्न हो तो, उस अरति परीषह को सहन करे तथा संयम में अरुचि नहीं लावे।" 8. स्त्री परीषह : इस संसार में जो स्त्रियाँ हैं, वे पुरुषों के लिए संग रूप आसक्ति का कारण हैं । इन स्त्रियों को जिस साधु ने ज्ञपरिज्ञा से त्याज्य समझकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से छोड़ दिया है, उस साधु का साधुत्व सफल है ।' 74 9. चर्या परीषह : साधु गृहस्थियों की नेश्राय रहित होकर अप्रतिबद्ध विहार करे। परिग्रह अर्थात् किसी भी स्थान में ममत्व भाव कतई नहीं रखे, गृहस्थों से सम्बन्ध न रखता हुआ घर रहित होकर विहार करता रहे।" 10. नैषेधिकी परीषह : पाप कर्मों की एवं गमनादि क्रिया की निवृत्ति रूप निषेध जिसका प्रयोजन हो वह नैषेधिकी है। स्वाध्याय अथवा कायोत्सर्ग के लिए श्मशान या एकाकी स्थान में रहे हुए मुनि को भयंकर उपसर्ग आने पर भी भयभीत नहीं होना चाहिये और न ही उद्विग्न होकर दूसरे
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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