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________________ 418 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन छह लेश्याओं पर जामुन फल खाने के इच्छुक छह पुरुषों का दृष्टांत | मुर्दर्शन सेठ का वृत्तान्त- पर्व तिथि में पौषधोपवास करके मौन व्रत धारण करने वाले सुदर्शन सेठ को अभया रानी नौकरों की मार्फत कोई छह आदमी जामुन के वृक्ष के पास गये। एक ने कहा- 'इसे ले आई। अपनी इच्छा प्रकट की। सेठ मौनव्रती और शीलवान् होने से मूल से काटो।' दूसरा बोला- 'मोटी डालियां काटो।' तीसरा बोली- बोला नहीं। रानी की कामभोग की इच्छा पूर्ण न हुई तो वह चिल्लाने 'छोटी छोटी डालियाँ काटो।' चौथे ने कहा- 'गुच्छे तोड़ लो।' | लगी दौड़ो, दौड़ो वह पुरुष मेरा शीलभंग करना चाहता है। सिपाही पाँचवा बोला- 'पके जामुन तोड़ लो।' छठे ने कहा- 'धरती पर पड़े दौड़े आये। सेठ को पकड़ कर राजा दधिवाहन के सामने ले गये। फल खा लो।' राजा के पूछने पर भी सेठ के मौन रहने से राजा ने उसे अपराधी सार- अध्यवसाय के अनुसार कर्मबन्ध होता है, अतः कर्मबन्ध | समझा। शूलि पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया। पर शील के प्रभाव से देवा करते विचार करो। ने शूलि का सिंहासन बना दिया। राजा और प्रजा को आश्चर्य हुआ। सेट का खूब सत्कार किया गया। THS DEHRAN - 26-DR ~ Wakhe Kा phhCUHD .. IANSMmme L रना (perc) hjlis Sparror yuvg P नन Raveey Ai/ resi MARATHI . 7 MALIS uhik rum inyms SHASTRI JHits % 3A કાલાંધિ(રામ) CHRISss RECT WAN arrogrJL H127uोनशोडकर लोकस्वभाव भावना- कमर पर हाथ रख कर खड़े हुए पुरुष की भरत राजा, मरुदेवी माता को हाथी पर बिठला कर ऋषभदेव आकृति के समान 14 राजू लोक हैं। उसके बीचों बीच 14 राजू लम्बी भगवान् की वन्दना करने गये। भरत राजा ने कहा- दादीजी, देखो और एक राजू चौड़ी त्रसनाड़ी है उसमें त्रसजीव उत्पन्न होते हैं। नीचे अपने पुत्र की ऋद्धि! वह दुःखी नहीं है। आप शोक न करें। तत्पश्चात् सात राजू लोक में 7 नरक भूमियाँ हैं। नाभि के स्थान पर मनुष्य क्षेत्र मरुदेवी माता अन्यत्व भावना भाकर, केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष (ढाई द्वीप) है उसके ऊपर सौधर्मादि बारह देव लोक हैं। गले के स्थान पधारौं। पर 9 ग्रैवेयक हैं। उसके ऊपर मध्य भाग में गोलाकार सर्वार्थ-सिद्धि तथा उसके चारों और त्रिकोणकार विजय आदि चार विमान हैं। उनके ऊपर सिद्धशिला और अलोक को स्पर्श करके सिद्ध भगवान् हैं।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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