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________________ तत्त्व मीमांसा * 399 स्वभाव पैदा होता है, वह स्वभाव अमुक समय तक उसी रूप में रहेगा, ऐसी काल मर्यादा निर्मित होती है, मधुरता में तीव्रता या मन्दता आदि विशेषताएँ भी होती हैं और उस बनने वाले दूध की मात्रा भी न्यूनाधिक होती है। इस प्रकार जीव द्वारा गृहित एवं बद्ध कर्म-पुद्गलों में चार अंशों का निर्माण होता है। 1. प्रकृति बंधः कर्म-पुद्गलों में अलग-अलग स्वभाव का उत्पन्न होना प्रकृतिबंध है। जैसे मेथी के लड्ड कफ-विकारों को दूर करते हैं, काली-मिर्च आदि का बना लड्डू पित्त को दूर करता है, उड़द का लड्डु पौष्टिकता देता है। इसी प्रकार कर्मपुद्गलों में अलग-अलग स्वभाव का पैदा होना प्रकृति बंध कहलाता है। जैसे ज्ञनावरणीय कर्म में ज्ञान को आवृत करने का, दर्शनावरणीय में दर्शन को रोकने का, वेदनीय में सुख-दुःख देने का, मोहनीय में सम्यक्त्व एवं चारित्र को रोकने का, आयु में नियत भव को रोक रखने का, नाम में विविध आकृतियाँ रचने का, गौत्र में ऊँचीनीची अवस्थाएँ बनने का और अन्तराय में जीव की शक्ति को रोकने का स्वभाव प्रकृतिबंध है। 2. स्थिति बंध : जैसे कोई मोदक दो चार दिन तक टिकता है (उसी रूप में बना रहता है, फिर खराब हो जाता है), कोई मोदक सप्ताह तक, कोई पक्ष तक और कोई मास भर तक टिक सकता है। उसी प्रकार जीव के द्वारा जो शुभाशुभ कर्मपुद्गल ग्रहण किए गए हैं, वे अमुक काल तक अपने स्वभाव को कायम रखते हुए जीव प्रदेशों के साथ बन्धे रहेंगे, उसके बाद वे शुभ या अशुभ रूप में उदित (फलित) होंगे, इस प्रकार से कर्मों का निश्चित काल तक के लिए जीव के साथ बंध जानास्थिति बंध है। जैसे ज्ञानावरणीय कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुर्हत और उत्कृष्ट तीस कोटा-कोटी सागरोपम की है। 3. अनुभाग-बंध : कुछ कर्म तीव्र रस से बन्धते है तथा कुछ मन्द रस से। शुभाशुभ कार्य करते समय जीव की जितनी तीव्र या मन्द प्रवृत्ति होती है, उसी के अनुरूप कर्म बंधते और उनमें फल देने की वैसी ही शक्ति होती है मृदु-कटु, तीव्रमन्द। जैसे कोई फल मधुर रस वाला होता है, कोई कटु रस वाला, कोई खट्टा, इसी प्रकार कर्म-पुद्गलों में शुभ या अशुभ, तीव्र या मंद रस का पैदा होना अनुभाग बन्ध कहलाता है।" 4. प्रदेश बंध : भिन्न-भिन्न कर्म-वर्गणाओं में परमाणुओं की संख्या का न्यूनाधिक होना प्रदेश बंध है। जीव द्वारा ग्रहण किए जाने पर भिन्न-भिन्न स्वभाव में परिणत होने वाली कर्म-पुद्गल राशि स्वभावानुसार अमुक-अमुक परिमाण में बंट जाती है, यह परिमाण विभाग ही प्रदेश बंध कहलाता है। जैसे-एक व्यक्ति का वजन 50 किलो है, अन्य किसी का 45 किलो है। इसी प्रकार बंधने वाले कर्म पुद्गलों के परिमाण में न्यूनाधिकता होती है, उसे ही प्रदेश बन्ध कहते हैं। चूंकि जीव संख्यात
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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