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________________ 376 *जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन तत्त्व में ही पाया जाता है। चेतना आत्मा का गुण है, अतएव आत्मा के चेतना गुण का प्रत्यक्ष अनुभव होने से आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि प्रत्यक्ष प्रमाण से हो जाती है। संसार में प्रतिपक्षी दो तत्त्वों का पाया जाना प्रत्यक्ष प्रमाण सिद्ध है । जैसे सुखदुःख, बन्ध-मोक्ष, धनी - निर्धन, ज्ञानी - अज्ञानी, चर-अचर, क्षर-अक्षर आदि। जड़ पुद्गलों का अस्तीत्व सर्व मान्य है। उनका प्रतिपक्षी तत्त्व भी होना चाहिये। जो जड़ अचेतन तत्त्वों का प्रतिपक्षी तत्त्व है, वही चेतनाशील जीव या आत्मा है। अनुमान से आत्मसिद्धि : 1. आत्मा का अस्तित्व है, क्योंकि इसका असाधारण गुण चैतन्य देखा जाता है । जिसका असाधारण गुण देखा जाता है, उसका अस्तित्व अवश्य होता है । जैसे चक्षुरिन्द्रिय । चक्षु सूक्ष्म होने से साक्षात् दिखाई नहीं देती, किन्तु अन्य इन्द्रियों से न होने वाले रूप विज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति से उसका अनुमान होता है। वैसे ही आत्मा का भूतों में न पाये जाने वाले चैतन्य गुण को देखकर अनुमान किया जाता है I 2. आत्मा है, क्योंकि समस्त इन्द्रियों का संकलनात्मक ज्ञान देखा जाता है। 'मैंने शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श को जाना' यह संकलनात्मक ज्ञान सब विषयों को जानने वाले एक आत्मा को माने बिना नहीं हो सकता। इन्द्रियों के द्वारा ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्येक इन्द्रिय अपने एकएक विषय को ही जानती है। जैसे आंख रूप को ग्रहण कर सकती है, शब्द, रसादि को नहीं । स्पर्शनेन्द्रिय स्पर्श को ग्रहण कर सकती है, रूपादि को नहीं । अतः इन्द्रियों द्वारा गृहित सब अर्थों को एक साथ ग्रहण करने वाला एक आत्मा अवश्य मानना चाहिये। जैसे पाँच खिड़कियों वाले मकान में बैठकर पाँचों खिड़कियों द्वारा दिखाई देने वाले पदार्थों का ज्ञाता एक जिनदत्त है । उसी प्रकार पाँच इन्द्रिय रूपी खिड़कियों वाले शरीर रूपी मकान में बैठकर आत्मा भिन्न-भिन्न विषयों को जानता है । उपमान : इन्द्रियाँ स्वयं पदार्थ को जानने वाली नहीं हैं। वे तो साधन मात्र है। जैसे खिड़कियाँ स्वयं पदार्थों को देखने वाली नहीं है। वे तो केवल माध्यम हैं । इन्द्रिय के चले जाने पर भी पर्वानुभूत पदार्थ का स्मरण होता है। यह स्मरण आत्मा को बिना कैसे हो सकता है। जिसने पदार्थ का पहले अनुभव किया है, उसको ही कालान्तर में उसका स्मरण हो सकता है । देवदत्त के देखे हुए पदार्थ को यज्ञदत्त स्मरण नहीं कर सकता। अतः इससे सिद्ध होता है, कि नेत्र द्वारा पहले देखे हुए पदार्थ को नेत्र के चले जाने के बाद स्मरण करने वाला एक ही आत्मा अवश्य होना चाहिये । आगम : आगमों में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया गया 1 आगमवाणी विश्वसनीय व्यक्तियों के वचन हैं । आगमानुसार कतिपय प्राणियों को यह
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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