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________________ तत्त्व मीमांसा * 363 कि अवस्था विशेष में कोई गुण प्रकट हों और कोई अप्रकट। जैसे अग्नि में रस अप्रकट रह सकता है। इस प्रकार जिन दो पदार्थों का एक-दूसरे के रूप में परिणमन हो जाता है, वे दोनों पृथक् जातीय द्रव्य नहीं हो सकते। इसीलिए आज के विज्ञान को अपने प्रयोगों से उसी एक जातिक अणुवाद पर आना पड़ा है। 6. भेद : स्कन्ध रूप में परिणत पुद्गलपिण्ड का विभाग होना भेद है। इसके पाँच प्रकार हैं1. आत्करिक : चीरे या खोदे जाने पर होने वाला लकड़ी या पत्थर का भेदन। 2. चौणिक : कण-कण रूप में चूर्ण हो जाना, जैसे सत्तू, आटा आदि। 3. खण्ड : टुकड़े-टुकड़ होकर टूट जाना, जैसे घड़े के कपालादि। 4. प्रतर : परते या तहें निकालना जैसे अभ्रक, भोज्यपत्र आदि। 5. अनुतट : छाल निकालना-जैसे बाँस, ईख आदि। 7. संस्थान : संस्थान दो प्रकार का है -इत्थंत्व और अनित्थंत्व। जिस आकार की किसी के साथ तुलना की जा सके वह इत्थंत्व है और जिसकी तुलना न की जा सके वह अनित्थंत्व हैं। मेघ आदि का संस्थान अनित्थंत्व है, क्यों अनियताकार होने से किसी एक प्रकार से उसका निरुपण नहीं किया जा सकता। अन्य पदार्थों का संस्थान इत्थंत्व रूप है, जैसे गेंद, सिंघाड़ा आदि गोल, त्रिकोण, दीर्घ, परिमण्डल (वलयाकार) आदि रूप में इत्थंत्व रूप संस्थान के अनेक भेद हैं। 8. स्थूलत्व-सूक्ष्मत्व : इनके दो-दो भेद हैं, अन्त्य और आपेक्षिका। जो सूक्ष्मत्व या स्थूलत्व अपेक्षा-भेद से घटित न होवें अन्त्य और जो अपेक्षाभेद से घटित होवें आपेक्षिक हैं। परमाणओं का सक्ष्मत्व तथा अचित महास्कंध का स्थलत्व अन्त्य हैं, क्योंकि परमाणुओं से अधिक सूक्ष्म और कोई नहीं है। अचित्त महास्कन्ध से स्थूलतर कोई नहीं है इसलिए ये दोनों अन्त्य हैं, मध्यवर्ती स्कन्धों में सूक्ष्मत्व-स्थूलत्व आपेक्षिक है, जैसे आँवले का सूक्ष्मत्व और बिल्व आँवले से बड़ा है अतः स्थूल है। लेकिन वही आँवला बेर की अपेक्षा स्थूल है और वही बिल्व की अपेक्षा से सूक्ष्म है। 9. स्निग्धत्व और रुक्षत्व : ये दोनों स्पर्श विशेष हैं। ये परिणमन की तरतमता के कारण अनेक प्रकार के होते हैं। तरतमता यहाँ तक होती है, कि निकृष्ट स्निग्धत्व और निकृष्ट रुक्षत्व तथा उत्कृष्ट स्निग्धत्व और उत्कृष्ट रुक्षत्व के बीच अनन्तानन्त अंशों का अन्तर रहता है। सबसे निकृष्ट अंश को जघन्य कहते हैं। सबसे अधिक अंश को उत्कृष्ट कहते हैं, शेष सब मध्यम अंश है। ___ 10. बंध : पुद्गलों के पारस्परिक संबंध को बन्ध कहते हैं। यह बन्ध दो प्रकार से होता है - 1. प्रायोगिक बन्ध तथा 2. वैस्रसिक बन्ध। जीव और शरीर का
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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