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________________ 328 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन इस प्रकार जैन दर्शन के नयवाद को सही रूप से समझ लेने पर समस्त विवादों का समाधान हो जाता है। नयवाद की यही उपयोगिता है। अनाग्रह ही स्याद्वादरूप अनेकान्त है और उसकी आधारशिला है नयवाद। नयवाद में अनन्त धर्मों के अखण्ड पिण्ड रूप वस्तु के किसी एक धर्म को प्रधानता देकर कथन किया जाता है। उस समय वस्तु में शेष धर्म विद्यमान तो रहते हैं, लेकिन वे गौण हो जाते हैं। इस प्रकार सत्य के एक अंश का ग्रहण करने वाला ज्ञान ही नय है। नयों द्वारा प्रदर्शित सत्यांश और प्रमाण द्वारा प्रदर्शित अखण्ड सत्य मिलकर ही वस्तु के वास्तविक और सम्पूर्ण स्वरूप के बोधक होते हैं। नयवाद जैन दर्शन का मौलिक एवं विलक्षण सिद्धान्त है। संदर्भ सूची : 1. स्याद्वाद मंजरी - मल्लिषेणसूरि कारिका 12 2. वही, कारिका 15 3. तत्त्वार्थसूत्र 1/6, उमास्वाति प्रवचनसार-आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा 27 वही, 35 6. वही, 29 7. वही, 21 8. वही, 28 9. स्थानांग सूत्र 2/1/71 10. तत्त्वार्थ सार-अमृतचन्द्र, अधिकार 1, गाथा 15 11. न्यायसूत्र - महर्षि गौतम, 1/1/2 12. तत्त्वार्थसार, अमृतचन्द्र, 1/15 की टीका 13. चरक संहिता, चरक, विमान स्थान, 8/47 14. न्यायावतार टिप्पण, पृ. 148-151, सिद्धसेन दिवाकर 15. चरक संहिता, चरक विमान स्थान, अ. 4, 8/84 16. तत्त्वार्थसार : आचार्य अमृतचंद्र, 1/18 17. न्यायावतार, सिद्धसेन दिवाकर, गाथा 1 18. प्रमाणनय तत्त्वालोक, वादिदेवसूिरि, 1/2 19. ब्रह्मसूत्र का शांकर भाष्य, शंकराचार्य 2/1/9 20. प्रमाण मीमांसा, आचार्य हेमचन्द्र, सूत्र 2 21. प्रमाण नय तत्त्वालोक, वादिदेव सूरि 6/1 22. तत्रानन्तर्येण सर्वप्रमाणानामज्ञाननिवृत्तिः फलम् ॥ 3 ॥ प्रमाण नय तत्त्वालोक, वादिदेवसूरि, 6/3
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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