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________________ 310 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन 1. किञ्चित साधोपनीत : इसमें दो पदार्थों में कुछ-कुछ समानता के आधार पर उपमा दी जाती है। जैसे-जैसा मंदर (मेरु) पर्वत है, वैसा ही सर्षप (सरसों) है और जैसा सर्षप है, वैसा ही मंदर है। जैसा आदित्यसूर्य है वैसा खद्योत-जुगनू है और जैसा खद्योत-जुगनू है वैसा ही आदित्य-सूर्य है। जैसा चन्द्रमा है, वैसा कुंद पुष्प है और जैसा कुंद पुष्प है, वैसा चन्द्रमा। यह किंचित्साधोपनीत है। 2. प्रायः साधोपनीत : प्रायः साधोपनीत अपेक्षाकृत अधिक व्यापक है। इसमें उपमेय और उपमान पदार्थगत समानता अधिक होती है। जैसे-जैसी गाय है, वैसा गवय होता है और जैसा गवय है, वैसी गाय है। 3. सर्वसाधोपनीत : किसी पदार्थ या व्यक्ति की स्वयं उसी से उपमा दी जाती है, उसे सर्वसाधोपनीत कहा जाता है। जैसे-अरिहंत ने अरिहंत जैसा ही किया, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती जैसा ही किया, साधु ने साधु जैसा ही किया। 2. वैधोपनीत उपमान प्रमाण : वैधोपनीत विलक्षणता का बोध करता है। किसी एक पदार्थ को अन्य से पृथक् रूप में बनाता है। इसके भी तीन प्रकार हैं - 1. किंचित्वैधोपनीत, 2. प्रायः वैधोपनीत, 3. सर्ववैधोपनीत। 1. किंचित्वैधोपनीत : किसी धर्म विशेष की विलक्षणता प्रकट करने को किंचित्वैधोपनीत कहते हैं। जैसे-जैसा शबला गाय (चितकबरी गाय) का बछड़ा होता है, वैसा बहुला गाय (एकरंगवाली) का बछड़ा नहीं। जैसा बाहुलेय है, वैसा शाबलेय नहीं। 2. प्रायः वैधोपनीत : अधिकांश रूप में अनेक अवयवगत विसदृशता प्रकट करने को वैधोपनीत कहते हैं। यथा-जैसा वायस (कौआ) है, वैसा पायस (खीर) नहीं होता और जैसा पायस होता है, वैसा वायस नहीं। 3. सर्ववैधोपनीत : जिसमें किसी भी प्रकार की सजातीयता न हो, उसे सर्ववैधोपनीत कहते हैं। यद्यपि सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती, इसमें भी उसी की उपमा उसी को दी जाती है। सर्वसाधोपनीत में शुभ गुणों की उपमा होती है तथा अशुभ या दुर्गुणों की उपमा सर्ववैधोपनीत में दी जाती है। जैसे-चाण्डाल ने चाण्डाल जैसा ही किया, दास ने दास जैसा ही किया। उपर्युक्त उपमान प्रमाण की तुलना हम न्यायसूत्र से कर सकते हैं। न्यायसूत्र में उपमान परीक्षा में पूर्वपक्ष में कहा गया है, कि अत्यन्त प्रायः और एक देश से जहाँ साधर्म्य हो, वहाँ उपमान प्रमाण नहीं हो सकता है, इत्यादि। यह पूर्वपक्ष अनुयोगद्वारगत साधोपमान के तीन भेद की किसी पूर्व परम्परा को लक्ष्य में रखकर
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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