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________________ 268 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन प्रमाण विवेचक सभी जैन दार्शनिकों ने प्रमाण के लक्षण में ज्ञान पद को अवश्य स्थान दिया है। इतना होते हुए भी जैन सम्मत पांच ज्ञानों में चार प्रमाण का स्पष्ट समन्वय करने का प्रयत्न अनुयोगद्वार के कर्त्ता ने नहीं किया है। अर्थात् यहाँ भी प्रमाण चर्चा और पंचज्ञान चर्चा का पृथक्करण ही सिद्ध है। शास्त्रकार ने यदि पंचज्ञानों में प्रमाणों को समन्वित करने का प्रयत्न किया होता, तो उनके मत से अनुमान और उपमान प्रमाण किस ज्ञान में समाविष्ट है, यह अस्पष्ट नहीं रहता । यह बात नीचे के समीकरण से प्राप्त होती है - ज्ञान प्रमाण : 1. अ) इन्द्रियजमति ब) मनोजन्यमति श्रुत अवधि मन:पर्यय केवल प्रत्यक्ष 0 आगम प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष अनुमान उपमान 2. 3. 4. 5. 6. 0 7. 0 उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है, कि ज्ञान पक्ष में मनोजन्य मति को कौनसा प्रमाण कहा जाए तथा प्रमाण पक्ष में अनुमान और उपमान को कौनसा ज्ञान कहा जाए - यह बात अनुयोगद्वार में स्पष्ट नहीं की गई है। वस्तुतः देखें तो जैन ज्ञान प्रक्रिया के अनुसार मनोजन्यमति जो कि परोक्षज्ञान है, वह अनुयोग के प्रमाण वर्णन में समावेश नहीं पाता । न्यायादिक शास्त्र के अनुसार मानस ज्ञान दो प्रकार का है, प्रत्यक्ष और परोक्ष । सुख-दुःखादि को विषय करने वाला मानस ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है और अनुमान, उपमान आदि मानस ज्ञान परोक्ष कहलाता हैं । अतएव मनोजन्यमति जो, कि जैनों के मतानुसार परोक्ष ज्ञान है, उसमें अनुमान और उपमान को अन्तर्भूत कर दिया जाय, तो उचित ही है। इस प्रकार पाँच ज्ञानों का चार प्रमाणों में समन्वय घटित हो सकता है । यदि यह अभिप्राय शास्त्रकार का भी है, तो कहना होगा कि पर- प्रसिद्ध चार प्रमाणों का पंचज्ञानों के साथ समन्वय करने की अस्पष्ट सूचना अनुयोगद्वार से मिलती है। लेकिन जैन दृष्टिकोण से प्रमाण विभाग और उसका पंचज्ञानों में स्पष्ट समन्वय करने का श्रेय तो उमास्वाति को ही है । उमास्वाति ने पाँच ज्ञानों को दो प्रमाणों में विभक्त किया है। प्रथम के दो ज्ञान परोक्ष प्रमाण है, शेष तीन ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । 957 “ तत् प्रमाणे । आद्येपरोक्षम् । प्रत्यक्षमन्यत्।' इस समन्वय को हम इस प्रकार समझ सकते हैं
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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