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________________ 170 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन स्वयं मिलने का प्रयत्न किया जाता है, पर भेद में फूट डालकर आधीनता स्वीकार करानी पड़ती है। तीसरा उपाय दान या दाम है। धन देकर या अन्य कोई भौतिक वस्तु देकर शत्रु को प्रसन्न करना दाम उपाय है। दाम उपाय द्वारा लोभी राजा सहज अधीन हो जाता है। अतः भूमि, द्रव्य, कन्या एवं अभय दान द्वारा शत्रु को अनुकूल बनाना दाम नामक उपाय है। जहाँ साम, दाम और भेद ये तीनों उपाय निष्फल हो जाते हैं, वहाँ दण्ड उपाय व्यवहार में लाना पड़ता है। दण्ड उपाय का प्रयोग करने के पूर्व अपनी शक्ति और बल का विचार कर लेना आवश्यक है। दण्ड का प्रयोग शक्ति हीन पर ही किया जा सकता है, सबल पर नहीं। इस प्रकार उक्त चार उपायों द्वारा शत्रु और मित्रों को अपने अधीन बनाना चाहिये। उपर्युक्त वर्णीत चारों उपाय प्राचीन काल से आज तक के समस्त राजनीति विशारदों के द्वारा अपने-अपने तरीके से अपनाये जाते रहे हैं। राज्य की सत्ता बल पर निर्भर करती है। बल छः प्रकार के माने गये हैं - 1. शारीरिक बल 2. आत्मिक बल 3. सैन्य बल 4. अस्त्र बल 5. बुद्धि बल 6. आयु बल जिस राजा के पास नीति और सैन्यबल होता है, उसके पास लक्ष्मी स्वयमेव चली आती है। उपर्युक्त छहों बलों में सैन्य बल सबसे महत्त्वपूर्ण है। शस्त्रों एवं अस्त्रों से सुसज्जित मनुष्यों के समुदाय को सेना कहा जाता है। सेना के मूलतः दो भाग हैं - स्वगमा और अन्यगमा। स्वगमा के अन्तर्गत पदातिसेना तथा अन्यगमा के अन्तर्गत रथ, अश्व एवं गज आदि वाहनों पर चलने वाली सेना आ जाती है। अधिकांशतः इस चतुरंगीणी सेना का ही उल्लेख मिलता है, किंतु भरत चक्रवर्ती की सेना को पड्ग कहा है। इन षड्गों का वर्णन करते हुए लिखा है - हस्तिसेना, अश्वसेना, रथसेना, पदाति सेना, देवसेना और विद्याधर सेना- ये छ: प्रकार की चक्रवर्ती की सेना थी। सेना के आगे दण्डरत्न तथा उसके पीछे चक्ररत्न चलता था। यह दण्ड रत्न आधुनिक टेंक है, जो मार्ग साफ करता हुआ सेना को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता था। मार्ग में आने वाली ऊबड़खाबड़ भूमि को समतल बनाता था तथा आने वाली विघ्नबाधाओं को दूर करता था। सैनिक सामग्री ढोने के लिए अश्वतर एवं उष्ट्र आदि अनेक वाहन रहते थे। सेना की उपयोगिता युद्ध में ही होती है। अतः यह जानना आवश्यक है, कि प्रारम्भिक काल में जहाँ मानव अति सरल प्रकृति का था, क्या तब भी युद्ध होते थे और क्यों होते थे? युद्ध के मुख्य रूप से तीन कारण होते हैं -
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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