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________________ 168 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन राज्य के संरक्षणार्थ चार प्रकार की सेना व सेनापतियों का निर्माण किया। साम, दाम, दण्ड व भेद नीति का प्रचलन किया। चार प्रकार की दण्ड व्यवस्था 1. परिभाष, 2. मण्डलबन्द, 3. चारक, 4. छविच्छेद का निर्माण किया।" 1. परिभाष : कुछ समय के लिए सापराधिक व्यक्ति को आक्रोश पूर्ण शब्दों के साथ नजर बन्द करने का दण्ड देना। 2. मण्डलबन्द : सीमित क्षेत्र में रहने का दण्ड देना। 3. चारक : बन्दीगृह में बन्द करने का दण्ड देना (कारावास) 4. छविच्छेद : हाथ-पैर आदि अंगोपांगों के छेदन का दण्ड देना। अधिकांश विद्वानों का मत है, कि प्रथम दो नीतियाँ ऋषभदेव के समय चली और दो महाराजा भरत के समय। आचार्य भद्रबाहु और आचार्य मलयगिरि के अभिमतानुसार बन्ध (बेड़ी का प्रयोग) और घात (डण्डे का प्रयोग) ऋषभदेवजी के समय प्रारम्भ हो गया था। मृत्युदण्ड का आरम्भ भरत के समय में हुआ। ___ इस प्रकार भारत में जिस राज्य व्यवस्था का विकास हुआ, उसका कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत था। धर्म पालन, शान्ति व्यवस्था, सुरक्षा और न्याय प्रदान करना ही उसका उद्देश्य था। राजा कानून और व्यवस्था का रक्षक, धर्म और नैतिकता का प्रेरक, आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण का सम्पादक, सर्वभूत हित तत्पर होता था। राज्य में आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि-व्यापार, उद्योग-धन्धे आदि की प्रगति, राष्ट्रीय साधनों का विकास, खानों की खुदाई, वनों का संरक्षण, कृषि की सिंचाई आदि का प्रबन्ध भी सम्पन्न किया जाता था। राज्य के कार्यों का क्षेत्र जीवन के सभी पहलूसामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक तक विस्तृत था। प्रजा रंजन तथा प्रजा के योगक्षेम के लिए राजाओं द्वारा सभी प्रकार के प्रयत्न किये जाते थे। प्राचीन काल में प्रभुशक्ति की हीनाधिकता के कारण राजाओं के निम्नलिखित भेद उपलब्ध होते थे - 1. चक्रवर्ती 2. अर्धचक्रवर्ती 3. मण्डलेश्वर 4. अर्धमण्डलेश्वर 5. महामाण्डलिक 6. अधिराज 7. राजा-नृपति 8. भूपाल चक्रवर्ती षट्खण्ड का अधिपति और संप्रभुता सम्पन्न होता था। बत्तीस हजार राजा इसकी अधीनता स्वीकार करते थे। अर्धचक्रवर्ती के अधीन सोलह हजार राजा रहते थे और यह तीन खण्डों का अधिपति होता था। इसकी विभूति और वैभव चक्रवर्ती से आधा माना जाता था। मण्डलेश्वर सम्राट जैसा पद होता था। इसका राज्य पर्याप्त विस्तृत होता था। अनेक सामन्त और छोटे-छोटे नृपति इसकी अधीनता में रहते थे।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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